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बनाये थे इसका कोई भी उल्लेख उपलब्ध नहीं है। प्रागे लिखे अनुसार वे सोमसुन्दरसूरिके पट्टधर हुए इससे उन्हीं के शिष्य होना माना जाता है, परन्तु इन सोमसुन्दरसूरिका जन्म सम्वत् १४३० में हुआ था और उन्होंने सात वर्षकी आयुमें सम्बत् १४३७ में दीक्षा ग्रहण की थी, अतः सम्वत् १४४३ जो मुनिसुन्दरसूरिका दीक्षाकाल है उस समय उनकी आयु तेरह वर्षकी ही होनी चाहिये और उस छोटी आयुमें - उनके शिष्य बनाना सम्भव नही हो सकता है। अपितु मुनिसुन्दरसूरिकी गुर्वावलीमें देवसुन्दरसूरि जो उस समय तपगच्छके मूल पाटपर थे और गच्छाधिपति थे उनके विषय में लगभग सीत्तर श्लोक लिखे हुए हैं, अतएव कदाच मुनिसुन्दरके दीक्षागुरु वे ही हो ऐसी कल्पना की जा सकती है।'
देवसुन्दरसूरि जो उग्रपुण्य प्रकृतिवाले थे वे संवत १४४२ में गच्छाधिपति हुये और उन्होंने सम्बत् १४५७ में कालधर्मको प्राप्त
१ ऐसा मानने का एक और दूसरा प्रबल कारण है:-गुर्वावली ग्रन्थ मुनिसुन्दरसूरिने संवत् १४६६ में पूर्ण किया था।। उस समय देवसुन्दरसूरिको काल किये आठ नौवर्ष हो गये थे, और पाटपर सोमसुन्दरसूरि थे, तिसपर भी प्रन्थ के अन्तमें वे अपने आपको देवसुन्दरसूरिके शिष्यके रूपमें प्रकट करते हैं । यह सम्पूर्ण पेराग्राफ ( Paragraph ) आगे उद्धृत कर दिया गया है जिससे स्पष्टतया समझमें आ जायगा । इस सम्बन्धमें ठीक ठीक निर्णय होना असम्भव है, कारण कि उसी गुर्वावलीके ४२० वें श्लोकमें लिखते हैं कि “ उन सोमसुन्दरसूरिका शिष्य मेरे जैसा गुणरहित प्राणी उपाध्याय माना जाता है । " यहां पर उनका शिष्य ये शब्द सामान्य हैं या विशेष हैं इनका समझना कठीन है। दोनों ओरकी बातोंको देखते हुए वे देवसुन्दरसरिके शिष्य थे ऐसा माननेका विशेष कारण है, परन्तु इसका निर्णय नहीं किया जा सकता । अपितु अन्य प्रका. रसे देखा जाय तो उनको कदाच देवसुन्दरसूरिने सोमसुन्दरसरिकी लघुवयमें भी उनके नामसे दीक्षा दी हो ऐसा होना सम्भव है। सोमसुन्दरसूरिको २० वर्षकी वयमें तो उपाध्याय पद मिला था इससे यदि १३ वे वर्षमें उनको शिष्य दिया गया हो तो भी इसमें कोई विरोध जैसी बात नहीं है ।
२ उपोद्घातमें लिखा गया था कि देवसुन्दरसूरिको आचार्यपद सम्वत् १४४२ में मिला था, परन्तु यह बात अभी भ्रमपूर्ण है । जयानन्दसूरिने सम्बत् १४४१-४२ में काल किया तब सम्वत् १४४२ में देवसुन्दरसूरि