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अध्यात्मकल्पद्रुम [ सप्तम् स्तम्भं तैः परमाणुभिः सुमिलितैः कुर्यात्स चेत्पूर्ववत्, भ्रष्टो मर्त्यभवात्तथाप्यसुकृती भूयस्तमाप्नोति न॥१०॥
भोजन-ब्रह्मराजाका पुत्र ब्रह्मदत्त जब केवल दो वर्षका था तब उस राजाकी मृत्यु हो गई । राजकार्य दीर्घ नामक मंत्रीको सौंपा गया। इस मंत्रीके साथ ब्रह्मराजाकी रानी चुलणी प्रेमासक्त हुई और विषयभोगोंका सेवन करने लगी। ब्रह्मदत्तको जब इस बातकी खबर मिली तो उसने इस दुष्ट संयोगको तौड़नेका गुप्तरूपसे प्रयास किया, परन्तु रानीने तो इसके विपरित उसका प्राण हरण करनेका दृढ़ संकल्प किया और एक लाक्षागृह बनवाकर उसमें नवपरिणीत वधूके संग कुँवरको भेजा तथा रात्री होनेपर उस गृहमें आग लगा देनेका विचार किया । इस दुष्ट निर्णयकी सूचना दूसरे मंत्रीने कुँवरको दी
और भूमिमें किये हुए सुरंगके रास्तेद्वारा कुँवरको बाहर सहिसलामत निकाल दिया । अरण्यमें एकला भटकता भटकता कुँवर एक महाअटवीमें आ पहुंचा । उस समय एक ब्राह्मणका साथ हुआ जिससे उसने अटवीको पार किया । राज्य मिलने पर उसे पानेको कह कर ब्रह्मदत्तने अपना कृतज्ञपन प्रगट किया । अनुक्रमसे कितने ही समय पश्चात् ब्रह्मदत्तको कांपिल्यपुरका राज्य मिला और छ खण्ड पृथ्वीको जीत कर चक्रवर्ती हुआ । उक्त ब्राह्मण यह हाल सुनकर कांपिल्यपुर पहुंचा और अत्यन्त प्रयास करने पश्चात् चक्रवर्तीसे मिला । चक्रवर्तीने उसे यथारुचि वर मांगनेको कहा । ब्राह्मणने विचार कर उत्तर देनेकी प्रार्थना की। घरपर पाकर उसने अपनी स्त्रीसे इसके विषयमें पूछा तो स्त्री विचार करने लगी कि जो यदि इसको गामग्रास मिलेग तो इसे वहीवटकी खटपट करनी पड़ेगी और ऋद्धिके प्राप्त हो जाने पर गरीब अवस्थाकी विवाहित स्त्री पसंद नहीं आयगी