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कषायत्याग
अधिकार ]
[ २५९ लक्ष्यकी मोर खिचा और सब चक्र जब अमुक दिशामें पाये तब बाण लगाया, जिसने आठ चक्रोंके बीचमें होकर बिना किसी पारेको स्पर्श किये हुए राधाकी दाहिनी आंखको छेद दिया । राजकुमारीने शिघ्र ही वरमाला उसके गलेमें डाल दी । इस हकीकतपर विचार करते हुए सातवें श्लोकमें कहते हैं कि" राधाके मुँहके नीचे आठ चक्र अनुक्रमसे एक दूसरेकी विरुद्ध दिशामें भ्रमण करते थे और उनके नीचे धनुर्धर पुरुष नीचे मुँह किये खड़ा रहा था । कदाच कोई भाग्यवंत निपुण उस राधाकी दाहिनी आंखको बाणके मुखसे छेदने में समर्थ हो सकता है, परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्यभवको व्यर्थ खो देता है वह फिर उसे कदापि प्राप्त नहीं कर सकता है। "
कूर्म-एक बहुत बड़ा द्रह है उसमें एक कछुभा रहता है। उसे एक समय पानी परकी सेवालके दूर हो जानेसे आसोज शुक्ला पूर्णिमाकी रात्रीको आकाशमंडपमें सकल कलासम्पूर्ण, नयनानंदकारी, समग्र नक्षत्रसहित विराजमान चन्द्र दिखाई दिया। इससे उसे अत्यन्त आनंद हुमा और इस कुदरतके देखावको अपने कुटुम्बको दिखाने निमित्त उसने पानीमें डूबकी लगाई भौर कुटुम्बको लेकर पिछा आया, लेकिन तबतक सेवाल वापिस फैल गई थी जिससे बिना चन्द्रका दर्शन किये हुए ही उसके कुटुम्बको पिछा लौट जाना पड़ा। पूर्णिमाकी रात्रि, सेवालका स्फोटन और कुटुम्बसहित उसकी उपस्थिति, ये सब योग फिरसे मिलना कठिन हैं । इसलिये पाठवें श्लोकमें कहते हैं कि-" सेवाल बंध छूटनेसे एक सरोवरमें रहनेवाला कछुपा पूर्ण चन्द्र के दर्शन करनेसे अत्यन्त आनंदित हुआ और उसका दर्शन करने निमित्त अपने कुटुम्बको ले आया, किन्तु सेवाल फिरसे मिल गई । इसप्रकार कदाच वह पुनर्दशन भी