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अधिकार ] गुरुशुद्धिः
[४५३ मुख्य बात गुरुमहाराजका बराबर संयोग होना है, फिर देव और धर्म तो उनके उपदेशसे नियमसर शुद्ध ही मिल जाते हैं । जो इस बातमें भूल रखकर तलाश नहीं करते हैं वे इस भवमें भी कितनी ही बार पश्चात्ताप करते हैं । हिदुस्तानमें धर्मके नामपर गुसांई, महन्त, काजी, आगाखान, श्रीपूज्य तथा गोरजी क्या क्या काम करते हैं यह अवलोकन करनेवाले के देखने तथा समझने में आसकता है । बड़े आश्चर्यकी बात है कि अविवेकी भविचारी प्रेमी अनुयायी तथा भकलोग इस विषय में आंख उठा. कर भी नहीं देखते हैं। अशुद्ध गुरु मोक्षप्राप्ति नहीं करा सकता-दृष्टांत. नानं सुसिक्तोऽपि ददाति निम्बका,
पुष्टा रसैर्वन्ध्यगवी पयो न च । दुःस्थो नृपो नैव सुप्लेवितः श्रियं,
धर्म शिवं वा कुगुरुर्न संश्रितः ॥ ८॥
" अच्छी तरहसे सिंचा हुआ निब कभी आम पैदा नहीं कर सकता है; (शेरडी, घी, तेल आदि ) रसोंको खिलाकर पुष्ट की हुई बंध्या गाय दूध नही दे सकती है। (राज्यभ्रष्टता जैसे ) खराब संयोगोवाले राजाकी खूब सेवा की जावे तो भी वह धन देकर प्रसन्न नहीं कर सकता है। इसीप्रकार कुगुरुका आश्रय लेने से वह शुद्ध धर्म तथा मोक्ष दे दिला नहीं सकता है।" .
इन्द्रवंशा. विवेचन-पांचवे श्लोकमें वर्णित बातका यह दृष्टान्त है। अर्थ स्पष्ट ही है।