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अधिकार ] यतिशिक्षाः
[४७७ भावनामय मूर्तिका चित्र खिचकर हृदयदृष्टिके सामने रखते हैं। मुनिराजका भावनामय स्वरूप (an ideal Munihood) 'ते तीर्णा भववारिधि मुनिवरास्तेभ्यो नमस्कुर्महे, येषां नो विषयेषु गृध्यातमनो नो वा कषायैः प्लुतम्। रागद्वेषविमुक् प्रशान्तकलुषं साम्याप्तशर्माद्वयं, नित्यं खेलतिचाप्तसंयमगुणाकोडे भजद्भावनाः॥१॥ ___ "जिन महात्माओंका मन इन्द्रियों के विषयोमें आसक्त नहीं होता, कषायोंसे व्याप्त नहीं होता, जो (मन) रागद्वेषसे मुक्त रहता है, जिन्होंने पापकार्योंको शान्त करदिया है, जिनकों समतारूपी अद्वैत सुख प्राप्त हुआ है, और जो भावना करता करता संयमगुणरूपी उद्यानमें सदैव क्रिड़ा करते है-ऐसा जिनका मन हो गया है वे महामुनीश्वर संसारसे तैर गये हैं उनको हम नमस्कार करते हैं ।" शार्दूलविक्रीडित.
विवेचन-अत्यन्त शुद्ध दशामें वर्तन करनेवाले महामुनिपुंगवोंकी स्थितिका वर्णन करते हुए निम्नस्थ गुणोंका आविर्भाव होता है।
१-शुद्ध मुनिराज पांच इन्द्रियोंके तेईश विषयों में आसक्त नहीं होते हैं। दृष्टान्तके रूप में उनको विलेपनपर राग नहीं होता है और दूधपाक-पूरीको देखकर मुंहमें पानी नहीं आता है। गटरकी तथा इतरकी गन्ध उनके लिये एकसमान है और स्त्रीसौन्दर्य आदि वस्तुओंको देखकर उनको मोह नहीं होता तथा पीआनु आदिका मधुर आलाप सुनकर भी उनका मन एक-सा रहता है।
२-क्रोध, मान, माया, लोभ-जिनपर कि सातवें अधि१ ये इति पाठान्तरम् । २ चात्मसंमयगुणाकोडे गति वा पाठः ।