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अधिकार ) यतिशिक्षा [५५३
एवं च विरतेरभ्यासेनाविरतिर्जीयते। अभ्यासादेव सर्वक्रियासु कौशल्यमुन्मिलति, अनुभवसिद्धं चेदं, लिखनपठनसंख्यानगाननृत्यादिसर्वकलाविज्ञानेषु सर्वेषामुक्तमपि- . अभ्यासेन क्रियाः सर्वा, अभ्यासात्सकलाः कला। अभ्यासाद् ध्यानमौनादि, किमभ्यासस्य दुष्करम् ।।
" विरतिका अभ्यास डालनेसे अविरतिका पराजय होता है, अभ्याससे सर्व क्रियामें कुशलता प्राप्त होती है, लिखना, पढ़ना, संख्या, गायन, नृत्य आदि सब कला विज्ञान अभ्यासद्वारा होते हैं ये सब विद्वानोंके अनुभवसिद्ध बात है। कहा भी है कि 'अभ्याससे सब क्रियायें हो सकती है, अभ्याससे सब कलायें प्राप्य हैं, अभ्याससे ध्यान, मौन आदि होते हैं। अभ्यासके सामने क्या कठिन है ? " अतः अभ्यास डालनेकी आवश्यकता है। गुप्तिको जो प्रवचनमाता कही जाती है उसका भी यही कारण है । इसके बराबर पालन करनेसे भगवानकी सब आज्ञाओंका पालन हो जाता है। अब आगेके तेरह श्लोकोमें मुनिको जो सीधे और आक्षेपरूपसे शिक्षा दी गई है वह बहुत उपयोगी है । वह अंकीर्ण होने के साथ ही साथ यथास्थित भी है, अतएव उस पर ध्यान देनेकी विशेष आवश्यकता है।
यतिस्वरूप-भावदर्शन. यो दानमानस्तुतिवन्दनाभि, .
ने मोदतेऽन्यैर्न तु दुर्मनायते । अलाभलाभादि परीषहान् सहन,
१ इसका सामान्य विषय मुनिहितशिक्षा है, अन्य हरेक हकिकतमें इसके अतिरिक्त अन्य कोई सम्बन्ध नहीं है । इन कहावतें ( Maxims ) कह सकते हैं । २ जपन इति वा पाठः ।