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अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोधः [५९९ से देखनेवालेको ऐसा जान पड़े कि सत्यके प्रभावसे वसुराजाका सिंहासन भाकाशमें श्रद्धर रहता है । लोगों में सर्वत्र बात फैल . गई कि सत्यके प्रभाव से देवतागण राजाके पास रहते हैं और उसकी सेवा करते हैं । सिंहासनके प्रभावसे कितने ही राजा उसके वशीभूत हो गये और उसकी कीर्ति दशों दिशाओंमें अधिकसे अधिक फैलने लगी ।
अब नारद एक बार इस शहरमें आया। वह पर्वतसे मिलने गया उस समय पर्वत शिष्योंको ऋग्वेद पढ़ाता था। उसमें यह बात आई कि 'अज' से यज्ञ करना । पर्वतने उस ऋचका अर्थ समझाते हुए कहा कि 'अज' अर्थात् बकरेंका बलिदान कर यज्ञ करना ! इस समय नारद समीप ही बैठा हुआ था। उसने कहा कि " भाई पर्वत ! ऐसा झूठा अर्थ क्यों करता है ? गुरुने तो हमको शिखाया था कि ' न जायते इति अजः ' बोनेसे न उगें ऐषा तीन वर्षका धान्य (शालि ) ऐसा 'अज' शब्दका अर्थ होता है, इस बातको तू किस प्रकार भूल गया है ? ऐसा झूठा अर्थ करना अयुक्त है, पापबन्ध करानेबाला है और परभवमें दुर्गतिमें ले जानेवाला है । " पर्वत बोला " तुम्हारा कहना जूठ है । गुरुने हमको ऐसा अर्थ कभी नहीं बतलाया था । अपितु " निघण्टु ” में 'अज' शब्दका अर्थ बकरा होता है " नारदने उत्तर दिया, ' भाई पर्वत ! शब्दकी अर्थघटना मुख्य और गौण दो प्रकारकी है, उनमेंसे गुरुने हमें गौण अर्थ बतलाया था। गुरु धर्मोपदेष्टा थे, श्रुति ( वेद ) धर्ममय है, इसलिये तू गुरु और वेदके विपरीत कह कर पापको एकत्र न कर । " पर्वतने उत्तर में आक्षेप करके कहा " गुरुने तो 'मज' अर्थात् बकरा ऐसा कहा था और गुरुके कहे शालार्थ के विपरीत कह कर तू पापको एकत्र करता है। इस