Book Title: Adhyatma Kalpdrum
Author(s): Manvijay Gani
Publisher: Varddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 754
________________ अधिकार ] शुभवृत्तिशिक्षोपदेशः - [६३७ विचार कर और क्यों नहीं कर सकता है इसपर ध्यान दे । शरीकी अशक्ति है या मनकी कमजोरी है इसे ढूंढ़ निकाल । अपितु सुकृत्य और दुष्कुत्यमें तेरी शक्ति और मन कितने प्रवृत होते हैं, उनमें तेरी क्या स्थिति रहती है, तू किस तादात्म्य वृत्तिसे उत्तम कार्य करता है और कितने अंतरसे खराब कार्य करता है, या तेरे सम्बन्धमें इसके विपरीत ही होता है अर्थात् उत्तम कार्य ऊपर ऊपरसे करता और खराब काम तादात्म्य वत्तिसे करता है; इन सब बातोंको तेरे हृदयमें विचार कर । अपितु कितने सुकृत्यमें या अपकृत्यमें तेरी शक्तिका व्यय होता है इसका भी तू विचार कर । ___इसप्रकार आत्मनिरीक्षण कर जागृत हुए जीव अनेक पापोमेंसे स्वाभाविकतया ही छूटकारा पा सकते हैं अथवा पापकार्योसे बचनेका उसे प्रबल निमित्त प्राप्त हो जाता है । इसलिये मात्मविचारणा कर जो साध्य कार्य प्रतीत हो उसीमें तुझे लक्ष्य देना और उन्हीकी सिद्धिके लिये प्रयास करना चाहिये, और जो त्याग करने योग्य कार्य जान पड़े उनका त्याग कर देना चाहिये । कहनेका यह तात्पर्य है कि आत्मविचारणा करके फिर हाथपर हाथ धरकर न बैठ रहना चाहिये, परन्तु फिर जो करने योग्य या तजने योग्य जान पड़े उनको करना तथा त्याग करना चाहिये । चौदह नियमोंको इसी धारणा अनुसार धारण करनेका शास्त्रकार उपदेश करते हैं और उनसे जिसप्रकार स्थूल पदार्थोपर अंकुश लगता है उसीप्रकार आन्तर प्रवृत्तिपर अंकुश लगानेके लिये आत्मजागृति बहुत उपयोगी है और इसीसे चौदह नियमोपर अंकुश आता है। इनका उपयोग साधुजीवन और श्राफकजीवनमें एकसा ही है।

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