Book Title: Adhyatma Kalpdrum
Author(s): Manvijay Gani
Publisher: Varddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 766
________________ अधिकार ] साम्य सर्वस्व [ ६४९ तथा स्थिरताका ख्याल करों । यदि इनमें कुछ प्राप्तव्य जान पड़े तो इनके प्रबल कारण समताको प्राप्त करनेका अभ्यास करो और उसको प्राप्त करने के लिये इस सम्पूर्ण प्रन्थ में बतलाये हुए भिन्न, भिन्न विषयोंपर ध्यान दों । दृढ़ प्रयत्न, दृढ निश्चय, और चालु अनुसरण अवश्य इच्छित परिणाम लावेंगे और मोक्षमन्दिर में तुम्हारे नाम के घंटे बजेंगे परन्तु इसके लिये ऊठा, उद्यम करो 1 स्मरण रहे कि इस समय जैसा अवसर है, जैसी जोगवाई है, वैसा समय और वैसी अनुकूलता फिर बार बार मिलना कठिन होगा । अविद्या त्याग यह समता बीज. स्वमेव दुःखं नरकस्त्वमेव, त्वमेव शर्मापि शिवं त्वमेत्र । स्वमेव कर्माणि मनस्त्वमेव, जही विद्यामवधेहि चात्मन् ! ॥ २ ॥ " हे आत्मन ! तू ही दुःख, तू ही नरक, तू ही सुख और मोक्ष भी तू ही है। अपितु तू ही कर्म और मन भी तू ही है । अविद्याको छोड़ दे और सावधान होजा । " इन्द्रवज्रा विवेचन - हे आत्मन् ! तूही दुःख है कारण कि दुःखको निष्पादन करने के लीये जीन कर्मों की आवश्यकता होती है, उनको तुने ही किये हैं । दुःख के साधनको भी तूही तैयार करता है और दुःखसुखकी सच्ची-झूठी कल्पना भी तू ही करता है । इसी नियमानुसार नरक भी तू ही है। अपितु दु:ख को संचय करने " १ अमियां पाठान्तरे अवज्ञां ' अर्थात् अवज्ञाका त्याग करदे, अर्थात् अनादरका त्याग कर दे । इससे भी अविद्या अधिक उचित अर्थ बतलानेवाला है । ८२

Loading...

Page Navigation
1 ... 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780