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अधिकार ] साम्यसर्वस्व
[६५७ मान कहा अपमान कहा मन, ऐसो विचार नहीं तस होई राग नहि मरुदोस नहि चित्त, धन्य अहे जगमें जन सोई ॥१॥ ज्ञानी कहोज्युं अज्ञानी कहो कोई,ध्यानी कहो मनमानी ज्यु कोई। जोगी कहो भावे भोगी कहो कोई, जाकुंजस्यो मन भावत होई । दोषी कहो निरदोषी कहो, पिंड पोषी कहो को औगुन जोई; राग नहि अरु रोस नहि जाकुं, धन्य अहे जगमें जन सोई ।।२।। साधु सुसंत महंत कहो कोई, भावे कहो निरगंथ पियारे, चोर कहो चाहे ढोर कहो कोई, सेवकरो कोउ जान दुन्हारे । विनय करो कोउ द्वंचे बैठाव ज्युं, दूरथी देख कहो कोउ जारे, धार सदा समभाव चिदानंद, लोक कहावत सुनत नारे ॥३॥ ____ यह है समता का लक्षण । समताके लीये कहा है कि 'उपशम सार के प्रवचने, सुजस वचन ये प्रमाणो रे' समता ही शास्त्रका सार है।
____ संसारसुख में सुख जैसा कुछ भी नहीं है। चाहे जैसा कार्य क्यों न हो किन्तु सुख तो जब उसमें समता होवे तब ही होता है । इसीलीये शास्त्रकार कहते है कि
समता बिन जे अनुसरे, प्राणी पुण्यना काम । छार ऊपर ते लींपणु, झांखर चित्राम ॥ ___ धार्मिक कार्यों में समता होनेपर ही सुख प्राप्त हो सकता है । मोक्षमें भी समताका ही सुख है । वहां लड़के लड़कियोंका पालनपोषण या मालकी लेनदेन, देखाव करनेका बाह्य रंग
और अन्तरंग कपटवृत्ति आदि कुछ नहीं होती है । स्थिरता ही समता है और मोक्षमें स्थिरता ही चारित्र है। मोषसुखमें जो ... अठारह पापस्थानोंमें छटे क्रोध पापस्थानकी सज्झाय ।