________________
अधिकार] साम्यसर्वस्व
[ ६६१ सन ) पर यहां ध्यान आकर्षित किया गया है। जो प्राणी इस प्रन्थका अभ्यास कर अनुभवको जाग्रत रखते हैं वे सर्व वाञ्छित पदार्थोंको प्राप्त कर सकते हैं । एक मात्र अभ्यास किसी कामका नहीं है । अभ्यासका सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों होते हैं। संसारमें खराबसे खराब पुरुष भी अभ्यासवाले ही होते हैं, और कई बार विना योग्यताके अभ्यासका दिखावा करनेसे दोग भी होता है । वस्तुतत्त्वे सार यह है कि जो अभ्यास करके उस अभ्यासको चित्त में धारण कर लेते हैं, मनके साथ मिला देते हैं और चित्तमें रमण कराते हैं वे ही इच्छित सुख अवश्य प्राप्त कर सकते हैं। लोक ( Locke ) नामक अंग्रेजी विद्वानका कहना है कि एक मिनिट पढ़ों और उस पर पन्द्रह मिनिट विचार करो । इसप्रकार जिनको मनन करनेकी आदत पड़ जायगी केही प्राणी सच्चा सार ढूंढ सकेंगे । मनन किये बिना भात्मजागृति • नहीं हो सकती, पढ़ा हुआ विषय अन्तरंगमें थोड़ासा भी प्रभाव डाले विना ऊपर ऊपरसे चला जाता है । मनकी भादत पड़नेपर ही वस्तुका रहस्य समझमें आ सकता है। वरना कुंएके मुह परके पत्थरके सदृश जिस पर की तमाम दिन पानी गिरते रहने पर भी पांच मिनिट पानी गिरना बन्द होता है कि पानी रहित हो जाता है इसीप्रकार मनन रहित अभ्यास अन्तरंगमें नहीं पैठता है।
इसप्रकार मनन किया जाय तो संसारशत्रुकी जयलक्ष्मी और मोक्षलक्ष्मी दोनों बहनोंके रूपमें इस जीवके साथ वरमाला आरोपण करे। यह प्राप्त करने की ही हमारी अभिलाषा है। जयश्रिया इस सांकेतिक शब्दसे प्रन्थकर्ताका नाम ध्वनित होता है।
X
• इसप्रकार साम्यसर्वस्वाधिकार नामक सोलवां और