Book Title: Adhyatma Kalpdrum
Author(s): Manvijay Gani
Publisher: Varddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 756
________________ अधिकार ] शुभवृत्तिशिक्षोपदेशः [ ६३९' हिंसाके त्याग होनेपर ही समता और क्षमारूप महागुण प्राप्त होते हैं और फीर गुणश्रेणीकी ओर वृद्धि पाते विलम्ब नहीं होता है। समतारहित किसी भी कार्यको शास्त्रकार व्यर्थ समझे इतना ही नहीं अपितु कितनी ही बार व्यर्थसे भी अधिक खराब समझते हैं, जबकि समतायुक्त कार्यों में एक इस प्रकारका अद्वितीय भानन्द आता है कि उसे अनुभवसे ही जाना जा सकता है । हिंसाका त्याग होनेपर मनमें से सर्व प्रकारके कुत्सित विकल्प दूर हो जाते हैं, कारणकि दुर्विकल्पोंका कारण हिंसा ही है । जब यह समझ लिया जाय कि दूसरोंका मन दुखाना भी हिंसा है और उसके त्याग करनेके उपाय ग्रहण किये जावे तब संकल्पोंका उत्पत्तिस्थान नष्ट हो जाता है । इसप्रकार हिंसाका परित्याग करनेसे मनयोगकी शुद्धि होती है और वचनप्रवृत्ति भी निरवद्य हो जाती है इसका कारण उपरोक्तानुसार है । ' ग्रन्थकर्त्ताने मनयोग और वचनयोगकी शुद्धिका स्पष्ट शब्दोंमें वर्णन कर दिया है, इन दोनोंकी शुद्धिसे काययोगशुद्धि सुसाध्य है, इसलिये इसका स्पष्टतया वर्णन नहीं किया गया है, परन्तु और सम्बन्धसे समजले । श्रीमद् यशोविजयजी वाचक मौनाष्टकमें लिखते हैं कि सुलभं वागनुच्चारमौनमेकेन्द्रियेष्वपि । पुद्गलेष्वप्रवृत्तिस्तु योगानां मौनमुत्तमम् ।। " वाणीका अनुच्चाररूप मौन तो एकेन्द्रियके लीये भी मुलम है, परन्तु योगोंका पुद्गलके सबन्धमें अप्रवृत्तिरूप मौन ही उत्तम है।" यह भाव बराबर हृदयमें रखना चाहिये । भावना-आत्मलय. मैत्री प्रमोदं करुणां च सम्यक,

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