________________
अधिकार ] शुभवृत्तिशिक्षोपदेशः [६४३ कदाच ही होता है । इसीलिये शुद्ध चारित्र पालते हुए अखण्डरूपसे एक वर्ष व्यतीत होजानेपर चारित्रवानको अनुत्तर विमानके देवताओंसे भी अधिक सुख प्राप्त होना आगमकार बतलाते हैं । दुःख और सुख भी मनोकल्पित है इसलिये तुझे महान लाभ होगा इसका ध्यान रखना।
आत्मा अनन्तज्ञानवाला और अनन्तवीर्यवान है । वीरप्रभुके जैसा बल, अभयकुमार जैसी बुद्धि, हेमचन्द्राचार्य जैसा श्रुतज्ञान, कयवन्ना शेठके जैसा सौभाग्य और गजसुकुमाल जैसी समता शक्तिरूपसे सब आत्मामें भरी हुई है । पुरुषार्थ कर उसको प्रगट करनेकी ही आवश्यकता है । इसी हेतुसे यहां आत्माको 'समर्थ ' शब्दसे सम्बोधित किया गया है । शुभ प्रवृत्ति के स्थान यहां बतलाये गये हैं और किंचित् फल भी निर्दिष्ट किये गये हैं।
उपसंहार-शुद्धप्रवृत्ति करनेवालेकी गति. ' इति यतिवरशिक्षां योऽवधार्य व्रतस्थ
श्चरणकरणयोगानेकचित्तः श्रयेत। सपदि भवमहाब्धि क्लेशराशिं स तीवा,
विलसति शिवसौख्यानन्त्यसायुज्यमाप्य॥१०॥ .यतिवरों के सम्बन्धमें ( उपरोक्तानुसार ) बताई हुई शिक्षा जो व्रतधारी ( साधु और उपलक्षणसे श्रावक ) एकाग्रह चित्तसे हृदयमें धारण करते हैं और चारित्र तथा क्रियाके योगोंका पालन करते हैं वे संसारसमुद्ररूप क्लेशके झुण्डको एकदम तैर कर मोचके अनन्त सुखमें तन्मय हो कर आनन्द करते हैं ।" . विवेचन-इसप्रकार तीर्थंकर महाराजाओं, गणधरों और पूर्वाचार्योंने सूचना की है। वे इस जीवपर एकान्त उपकार