Book Title: Adhyatma Kalpdrum
Author(s): Manvijay Gani
Publisher: Varddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 763
________________ ६४६ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ पंचदश वशीभूत करने की विशेष आवश्यकता है । ये ज्यों ज्यों वशमें होता जाता है त्यो त्यों कर्मबन्धमें बहुत भिन्नता होती जाती है। यह जब निर्मल होता है तब आत्मप्रदेशमेंसे शुभ भावना उठती है, शुभ भावनासे अात्मलय होता है, आत्मलयसे केवलज्ञान प्राप्त होता है और उसके बाद ही मुक्ति प्राप्त होती है। मुक्ति प्राप्त करना ही कर्तव्य है और यह ही प्राप्तव्य है। हेय, ज्ञेय, उपादेयका स्वरूप समझ कर स्वानुकूल क्रिया प्रवृत्ति रखना यह हमारा काम है, परिणाम सुलभ है और इस भवमें भी अनुभव. गोचर है । एक वार कार्य करो और फीर शुभ फल प्राप्त होगा इसे निश्चय समझो । ये शुभवृत्ति रखनेके जो शिक्षापाठ दिये गये हैं वे हृदयपटपर अंकित करलेने योग्य हैं । इति सविवरणः शुभवृत्तिशिक्षोपदेशनामा पञ्चदशोऽधिकारः।

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