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अध्यात्मकल्पद्रुम
[ चतुर्दश सार यह है कि कषायका त्याग करना, उनके ( कषाय ) करनेका प्रसंग उपस्थित होनेपर भी न करना और आत्मिक चिन्तवना करते रहना चाहिये । कषाय ही संसारका लाभ है तथा संसारकी वृद्धि करनेवाला है । इसकी वृद्धि होने देनेसे महान् हानि होती है । कषायसे अनेको जीव दुर्गतिको प्राप्त हुए हैं जिसके दृष्टान्त इस ग्रन्थके सातवे अधिकारमें योग्य स्थानपर बतलाये गये हैं । करट और उत्करट मुनिका दृष्टान्त जाननेलायक है इसलिये यह यहां दिया जाता है।
करट और उत्करट नामके दो भाई थे। ये दोनों सगे भाई नहीं थे किन्तु मासी मासी के लडके थे। वे दोनों अध्यापकका काम करते थे। एक बार उनको संसारसे वैराग्य उत्पन्न हो गया इसलिये उन्होंने व्रत ग्रहण किया। वे बहुत तपस्या करने लगे । पृथ्वीतलपर विहार करते करते वे कुणालानगरी में चौमासा करनेके लिये भाये और ग्राममें फिर कर किलेके पास एक खाइमें बैठकर घोर तपस्या करने लगे। वर्षात होगी तो ये साधु बह जावेगें ऐसा विचारकर क्षेत्रदेवताने वर्षातको कुणाला नगरी में नहीं बरसने दिया, उसको रोकदी। उस नगरीको छोडकर आसपास बहुत अच्छी वर्षा हुइ। गांवके मनुष्य इसका कारण जान गये इसलिये वे मुनियों को अन्तःकरणसे श्राप देने लगे और अन्तमें सब लोग एकत्र होकर मुनियोंपर यष्टि-मुष्टि आदिका प्रहार करके उनको ग्रामसे बहार निकाल दिये। इस समय लोगोंके किये तादनतर्जनसे गुस्से होकर वे मुनि बोले ।
करट-वर्ष मेघ! कुणालायां' हे वर्षा ! तू कुणालामें बरस । उत्करट-दिनानि दशपंच च ' पन्द्रह दिनतक बरस । करट-मुशलप्रमाणधाराभिः ' मूसलाधार पानी, हरस्ने ।