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अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोध संवरोपदेशः [ ६१९
. "मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करनेका बड़ेसे बड़ा कारण सब प्रकारके संवरोमें भी मनका संवर है ऐसा समझकर समृद्ध बुद्धिजीव कषायसे उत्पन्न हुए दुर्विकल्पोंका त्यागकर मनका संवर करे।"
उपजाति, विवेचन-सुख प्राप्त करना सर्व प्रवृत्तियोंका हेतु है । इनमें भी मोक्षसुख प्राप्त करनेकी इच्छा उत्कृष्ट होती है, क्योंकि यह अनन्त सुख है । तब फिर पिछी बात तो मन संयमपर ही आकर ठहरती है । संवर करना मोक्षप्राप्तिका परम उपाय है, इसमें भी मन संवर करना सर्वोत्कृष्ट साधन है । " मन जीता उसने सब कुछ जीता" और 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः' इस प्रबल सूत्रपर रचा हुआ मानवशास्त्र यदि मनकी प्रवृत्तिपर आधार रक्खे तो इसमें कोई विचित्रता नहीं हैं । मनपर बड़ा आधार है, इसमें भी जब कषायसे होनेवाले संकल्पविकल्प त्याग कर दिये हो तब मनमें जो शांति, प्रेम, मैत्रीभाव उत्पन्न होते हैं उसका अपूर्व आनंद तो अनुभवी ही जान सकते हैं। इसका सारांशमें ख्याल करना हो तो इतना ही कहा जा सकता है कि, छ खण्डके अधिपति चक्रवर्तीका सुख भी मनके सुखके सामने गिनतीमें नहीं, हिसाबमें नहीं और अधिक स्पष्टतया कहा जाय तो इसके सामने कुछ भी नहीं है । इसलिये हे बन्धुओ ! वारंवार सूचना है, प्रेरणा है, उपदेश है कि मनको सुधारो, खराब विचार करनेसे रोको, कषायजन्य दुर्ध्यान और दुर्विकल्पोंका त्याग करावो और शुभ विचारोंकी ओर प्रवृत्ति करावो अन्तमें ध्यानधारा धारण कर, कर्मकी नीर्जरा कर, नीचेके श्लोकमें लिखा हुआ सुख प्राप्त करो, अथवा उसके प्राप्त करनेके अधिकारी बनो।