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पंचदशः शुभवृत्तिशिक्षोपदेशाधिकारः ।
चि तदमन, वैराग्यउपदेश और यतिशिक्षा कह कर र गत अधिकारमें मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और
योगके निरोध करने का उपदेश किया और प्रसंगNow वश संवर करनेका गर्भित उपदेश दिया गया। अब यह बतलाया जाता है कि वृत्ति किस प्रकारकी होनी चाहिये । अमुक प्रणालिकाके बन्द होने पर यंत्रकी शक्तिका उपयोग करनेके लिये नवीन प्रवाहोंको ढुंढ़ने चाहिये, अन्यथा शक्तिका लय होता है अथवा अस्तव्यस्त दिशामें चली जाती है। इस अधिकारमें जो वृत्ति-वर्तन बताया गया है उनमेंसे बहुतसे साधुयोग्य है और कई श्रावकके योग्य है । पाठकोंको अपने योग्यताके प्रमाणमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । यह अधिकार विशेषतया साधुको उद्देश कर लिखा गया है। प्रत्येक श्लोकके प्रसंगपर विवेचन किया गया है।
आवश्यक क्रिया करना. आवश्यकेष्वातनु यत्नमाप्तो.
दितेषु शुद्धेषु तमोऽपहेषु । न हन्त्यभुक्तं हि न चाप्यशुद्धं,
वैद्योक्तमप्यौषधमामयान् यत् ॥१॥ "प्राप्त पुरुषोद्वारा बतलाये शुद्ध और पापोंको नाश १ मामयापहमिति पाठान्तरं रोगहरणक्षममित्यर्थः ॥