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६०२ ] अध्यात्मकल्पद्रुम
[ चतुर्दश असत्य शब्दके उच्चारण करते ही देवतागण उसपर कोपायमान होगये और जिस स्फटिक वेदिकापर वह बैठता था उसके टुकड़े टुकड़े होगये । राजा भूमिपर गिर पड़ा, उसपर सिंहासन पड़ा
और वसुमती( पृथ्वी )का नाथ वसुराज मृत्युको प्राप्त हो वसुमतीके नीचे गया । अब भी वह नारकीकी महावेदनाको सहता है।
जिन वचनोंपर संसारका प्रवाह चलता हो अथवा भविध्यमें चलनेका सम्भव हो उन वचनोंको तो बहुत विचारकर निकालना चाहिये । सत्य वचन बोलनेकी महत्ता इस कथासे स्पष्टतया समझी जा सकती है।
दुर्वाचाका भयंकर परिणाम. इहामुत्र च वैराय, दुर्वाचो नरकाय च । अग्निदग्धाः प्ररोहन्ति, दुर्वाग्दग्धाः पुनर्नहि ॥८॥
" दुष्ट वचन इस लोक और परलोकमें अनुक्रमसे वैर कराते हैं और नरक गति प्राप्त कराते हैं, अग्निसे जला फिर उगता है परन्तु दुष्ट वचनसे जले हुएमें फिरसे स्नेहांकुर नहीं फूटता है।"
अनुष्टुप. . विवेचन-इस श्लोकमें दो बातोंका समावेश है । इस लोक और परलोक में दुर्वचनका क्या फल होता है यह बतलाया गया है । दुर्वचनसे इसलोकमें वैर उत्पन्न होता है और परलोकमें नरक गति प्राप्त होती है । इस लोकके आश्रित फलके सम्बन्धमें विशेष रीतिसे समझने के लिये कहते हैं कि-धान्य बोनेसे उगता है, परन्तु यदि वह धान्य जल गया हो तो बीज नष्ट हो जाता है इसलिये नहीं उग सकता है; परन्तु कोई कोई कठोर बीज जल जाने पर भी उग जाता है, परन्तु जो दुर्वचनसे जले