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अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोधः [ ५९७ ....एक समय गुरु सोते हुए थे उस समय दो चारण मुनि बातें करते करते आकाशमें जा रहे थे। उनकी बातचीतसे गुरुने समझा कि तीन शिष्योमेंसे दो नरकमें जायेंगे और एक स्वर्गमें जायेगा ऐसा वे कह रहे थे। इस बातको सुनकर गुरुको अत्यन्त खेद हुआ । इन तीनों में से कौनसा भाग्यशाली स्वर्गमें जायगा इसकी परीक्षा करने के लिये गुरुने उन तीनोंको एक साथ अपने पास बुलाये और प्रत्येकको जो के आटेका बनाया हुआ वनावटी एक एक मुर्गा देकर कहा कि जिस स्थानपर कोई न देखते हो वहां जाकर इसका वध करायो । वसु और पर्वतने तो एकान्त स्थानपर जाकर मुर्गेको मार डाला । महात्मा नारद भी नगरके बाहर गया और एक निर्जन एकान्त स्थान ढुंढा ।चारों दिशाओं में दृष्टि डालकर बिचार करने लगा कि गुरुने कोई न देखता हो वहां इस मुर्गेको वध करनेकी आज्ञा दी है, परन्तु यहां तो यह स्वयं ( मुर्गा ) देखता है और मैं भी देखता हूं, ये खेचर
आकाशमें ऊडते हुए देखते हैं और लोकपाल देखते हैं तथा दिव्यचक्षुसे ज्ञानी महाराज भी देख रहे हैं । अतएव ऐसा एक भी स्थान नहीं है कि जहां कोई भी न देखता हो इसलिये गुरुकी आज्ञाका यही मतलब है कि मुर्गेको न मारना । गुरु सच्चे दयालु है और उन्होने ऐसी हिंसाकी आज्ञा दी हो ऐसा असंभव है। ऐसा विचारकर मुर्गेको बिना वध किये वापीस लाया और उसको न मारनेका कारण गुरुजीसे कहा । गुरुके मनमें निश्चय हुमा कि नारद स्वर्गमें जायगा । गुरुने कहा 'बहुत अच्छा है।' थोड़ी देरके पश्चात् पर्वत और वसु आये और गुरुसे कहा कि निर्जन वनमें कोई न देख सके वहां हमने मुर्गोका वध किया है । गुरुने कहा कि 'हे मूर्खानन्दो ! तुम स्वयं देखते थे तो क्यों मारा ?' कलाचार्य के मनमें बहुत खेद हुआ कि ये दोनवे शिष्य नरकमें