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अध्यात्मकल्पद्रुम [चतुर्दश बाले होने चाहिये । सावध वचन बोलनेसे भाषापर अंकुश नहीं रहता है, दुनियामें बोझ नहीं पड़ता और अपने विचार गंभीर नहीं रह सकते हैं, बोलते समय मनमें क्षोभ रहता है और फिर मस्तिष्क चक्कर खाता रहता है तथा चिन्तापूर्ण रहता है । निरषध वचन बोलनेवालेकी शुभ गति होती है । ' नरो वा कुंजरो वा' इतना गर्भित वचन बोलनेसे धर्मराज भी इतने अंशमें धर्मसे भ्रष्ट हुए । अतः सत्य बोलना, पूरापूरा सत्य बोलना, और सत्य सिवाय कुछ न बोलना, ये तीनों सूत्र बराबर स्मरण रहें । किसी खास बातको लेकर सच्च बोलेंगे तो सुननेवाला पुरुष न समझ सकेगा, परन्तु इसे शुद्ध सत्य भाषा नहीं कह सकते हैं । ऐसे प्रसंगपर हम कई बार जानते भी है कि श्रवण करनेवाला पुरुष झुठे अर्थमें ही समझ सकता है परन्तु ऐसा न करना चाहिये । वसुराजा असत्य बोलनेसे नरकको प्राप्त हुआ। जिस सत्य वचनपर सम्पूर्ण संसारका आधार है वह तो स्पष्टतया सत्य ही होना चाहिये । वसुराजाका दृष्टान्त बोधदायक होनेसे टीकानुसार यहां लिखा जाता है।
पृथ्वीपर विख्यात श्रुतीपुर नामक नगरी थी। इस नगरीमें महातेजस्वी अभिचन्द्र नामक राजा राज्य करता था। उसके सत्यवादी वसु नामका एक पुत्र था । यह वसु बाल्यावस्थासे ही महाबुद्धिशाली था और सत्य वचनोच्चारके गुणके लिये प्रसिद्ध हो गया था । उसके पिताने उसे क्षीरकदंबक नामक कलाचार्यके पास अभ्यास करनेको रक्खा । उसके साथ उसके गुरुका पुत्र पर्वत और एक नारद नामक ब्रह्मचारी अभ्यास करता था। गुरुकी तीनो शिष्योंपर अपूर्व प्रीति थी और अत्यन्त ध्यानपूर्वक अभ्यास कराते थे।