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अधिकार ] यतिशिक्षा
[ ५७१ इसप्रकार यह यतिशिक्षाधिकार पूरा हुा । यह अधिकार बहुत उपयोगी है । वेशमात्रसे गर्व न करना, लोकरंजनको प्रवृत्ति नहीं करना, पात्मउन्नति का शुद्ध दृष्टिबिन्दु हृदयभावना सन्मुख सर्वदा रखना, मन, वचन, कायाके योगोंकी शुभ प्रवृत्ति करना, लोक सन्मानसे आत्मिक गुणों पर होनेवाला प्रभाव प्रमादसे होनेवाला अधःपात, किसी वस्तुपर मूर्छा न रखनेका उपदेश, परिग्रह किसको कहते हैं उसका शुद्ध स्वरूप, उपाधि, वस्त्र-पात्र पर मूर्खा न करनेका सबल कारण, विषय प्रमादका त्याग, भावना करनेका फल, संयमगुणका स्वरूप, उसके पालनेका फल, उसके विरोध करनेका दुष्ट विपाक, समिति और गुप्तिका स्वरुप, साधुपनमें सुख, उसकी समानता, सावद्य कृत्य और मुनिकृत श्रादेशका परस्पर सम्बन्ध, अन्तमें संयमसे होनेवाला स्थूल सुख, और संयमके नाममात्रकी ओर लोगों का पूज्यभाव-मादि बाते अल्प शब्दोंमें भी बहुत जोर दे देकर इसके योग्य जीवके मनपर प्रभाव डालनेवाली है और मुमुक्षु भक्तजनोंको भी शुद्ध गुरुकी पहचानके लिये और विशेष गुणप्राप्तिकी इच्छा उत्पन्न करने के लिये उनके स्वरूपको जाननेकी विशेष भावश्यकता है इसलिये उनके लिये भी यह बात उपयोगी है।
इस अधिकारमें अनेकों बातोंका समावेश किया गया है । इससे अन्य सब अधिकारोंसे यह अधिकार बडा होगया है, किन्तु वस्तुको गम्भीरताको देखते हुए कुछ अधिक लिखा नहीं जान पड़ता है । अपितु इसमें लिखे प्रत्येक श्लोकपर बहुत विधे. चन किया जा सकता है, क्योंकि आशय बहुत गम्भीर है ऐसा होनेपर भी अधिकारीकी उच्च दृष्टिको देखकर और विषयके साथ पाठकोंको विशेष परिचय होगया है इसलिये यहां कम विवेचन किया गया है। ग्रन्थका यह विभाग-बहुत गहरे भावसे लिखा