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अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोधः . [५८३ समयके प्राप्त होने पर ) इन बन्धके होनेका कारण मिथ्यात्वभविरति-कषाय और योग ये चार हैं । इसके ५७ भेद हैं। इन सतावन बंधके कारणोंको समझनेकी अत्यन्त आवश्यकता है। इसमें प्रथम ५ प्रकारके मिथ्यात्व हैं जिनको ऊपर पढ़ चुके हैं। अब शेष तीन हेतुओं का विस्तार बतलाया जाता है।
बारह भविरति-पांच इन्द्रिय और मनका संवर न करना, और छकाय जीवका वध करना ये बारह प्रकारके भविरति कर्मबन्धनके हेतु हैं।
कषाय-संसारका लाभ । ये पच्चीस हैं। इन पर विषयकषाय द्वारमें उचित विवेचन हो चुका है । क्रोध, मान, माया, लोम इनमें से प्रत्येकके चार चार भेद हैं। उत्कृष्ट पन्द्रह दिवस तक रहते हैं और देवगति प्राप्त कराते हैं वे ' संज्वलन', उत्कृष्ट चार महिने चले और मनुष्यगति प्राप्त करावे वे 'प्रत्याख्यानावरण', उत्कृष्ट वर्षभर चले और तिर्यंचगति प्राप्त करावें वे 'अप्रत्याख्यानी' और उत्कृष्ट यावजीव चले और नरकगति प्राप्त करावे वे 'अनंतानुबंधी' ये अनुक्रमसे यथाख्यात चारित्र, सर्वविरति, देशविरति और समकितगुण प्राप्त नहीं होने देते हैं। ये सोलह भेद हुए । इनमें हास्य, रति, अरति, शोक, भय
और जुगुप्सा तथा स्त्रीवेद, पुरूषवेद और नपुंसकवेद इन नो नो कषायोंको मिलानेसे पच्चीस कषाय होते हैं। ये कर्मबन्धके प्रबल हेतु हैं। ... योग पंद्रह है-मनोयोग के चार भेद हैं
१ सत्यमनोयोग-सच्चा विचार करना । .... २ असत्यमनोयोग-झूठे विचार ।
३ मिश्रमनोयोग-जिस विचारमें कुछ बातें सबी और कुछ झूठी हों।