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अधिकार] यतिशिक्षा
[ ५७५ कहो या चाहे जो कहो, परन्तु साधुजीवनके पाससे जिस स्पष्ट उपदेशकी और उद्देशकी आशा होती है वह उस वर्गके बुद्धिशाली भी नहीं समझ सकते हैं । व्यर्थ समुदाय भेद अब छोड़ देना चाहिये और शास्त्रोक्त नियंत्रणाओंको कायम रख शासनके सामान्य हित निमित्त एकसा उद्यम करना चाहिये क्योंकि ऐसा करनेकी बहुत आवश्यकता है। इस विषयमें साधु बहुत कुछ कर सकते हैं। धार्मिक उन्नति होनेपर पुण्यबलकी जाप्रति होगी जिससे सामान्य स्थिति भी सुधर जायगी। साधु भादि धर्मके संरक्षण कार्यमें बहुत कुछ कर सकते हैं इसका यह कारण है कि उनको संसारकी उपाधि नहीं, भरणपोषणकी चिन्ता नहीं, पुत्रपुत्रियोंका विवाह करना नहीं, घरहाट बनाने नही और मनको अन्यत्र रोकना पड़े ऐसा कोई कार्य नहीं और न किसी की परवाह ही है।
इस अधिकारमें कभी कभी पुनरावर्तन हुआ है। विषयकी गंभीरता और गहनताको देखकर प्रेरणा करनेके लिये ऐसा करना युक्त है। प्रत्येक विषयपर प्रसंगानुसार नोट लिखे गये हैं इसलिये उपसंहारमें अब और विशेष लिखनेकी आवश्यकता नहीं है।
इस यविशिक्षा उपदेश में बहुत कुछ कहा गया है। हे यति ! मनुष्यभव आदि संयोग मिलने पश्चात् और संसारसे निकलनेका ऐसा उत्तम द्वार प्राप्त होने पश्चात् भी यदि तूं उचित लाभ न उठायगा तो फिर तुझे हाथ मलने पड़ेगें । इसभवमें थोडेसे समय तक मनपर अंकुश रख इन्द्रियों के विषय तथा कषायोंकों छोड़ देगा तो फिर तूझे महान सुख प्राप्त होगा, दुःखका नाश होगा और परवस्तुका आशीभाव मिट जायगा । हे साधु ! तेरा जीवन समिति और गुप्तिमय है । ये अष्टप्रवचन माता है और इनको गुनने के लिये प्रयत्न करना तेरा मुख्य. कर्तव्य है । विशेष