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अधिकार] यतिशिक्षा
[५५१ रका लेख है वह यथास्थित है। यहां तो विशाल अर्थवाले प्रमादाचरण-मद्य, विषय कषाय, विकथा और निद्रामें न पड़ जानेका उपदेश है। इन प्रमादोंको करनेवाला जीव अवश्य विकासक्रममें नीचे गिर जाता है और यदि इसके साथ मत्सरईर्षा करे तो फिर अधःपात होते समय गर्दनमें बड़ा पत्थर बांधता है, जिसके कारण वह तैरकर कदापि ऊपर नहीं उठ सकता है और बेचारा क्षणिक सुखके लिये अनन्त काल तक संसारसमुद्रके नीचे २ बैठता जाता है।
यहां मत्सर न करने, पर अवर्णवाद न बोलने, और प्रमाद न करने का उपदेश है । यह उपदेश. साधु जीवनके लिये विशेष उपयोगी है किन्तु दूसरोंके लिये भी ग्रह कम उपयोगी नहीं है।
निर्जरानिमित्त परिषहसहन, महर्षयः केऽपि सहन्त्युदीर्या
प्युग्रातपादीन्यपि निर्जरार्थम् । कष्टं प्रसङ्गागतमप्यणीयोऽ
पीच्छन् शिवं किं सहसे न भिक्षो ! ॥४॥
" जब कि बड़े बड़े ऋषि मुनि कर्मकी निर्जरानिमित्त उदीरणा करके भी आतापनादिको सहन करते हैं तो फिर तू जो मोक्षका अभिलाषी है तो तुझको प्राप्त हुए अत्यन्त अन्प कष्टको मी हे साधु ! तू क्यों नहीं सहन करता है ?"
. उपजाति. विवेचन-कर्मके उदय काल आनेके पूर्व ही पुरुषार्थद्वारा आकर्षण कर उसे भोग लेना 'उदीरणा' कहलाती है। (पूर्वबद्ध कर्मोंकी निर्जरा करने निमित्त वैसी स्थिति प्राप्त होनेसे पूर्व ही