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अधिकार] यतिशिक्षा
[४८७ मासे कुछ उचित प्रतीत होती है, क्योंकि ऐसा करनेका उनको अधिकार है, परन्तु नामधारी ! तेरे तो एक भी इससे बचनेका साधन नहीं है।
. बाह्य वेश धारण करनेका फल. जानेऽस्ति संयमतपोभिरमीभिरात्म
नस्य प्रतिग्रहभरस्य न निष्क्रयोऽपि । किं दुर्गतौ निपततः शरणं तवास्ते, सौख्यश्च दास्यति परत्र किमित्यवेहि ॥६॥.
“ मेरे विचारानुसार हे आत्मन् ! इस प्रकारके संयम तथा तपसे तो ( गृहस्थके पाससे लिये हुए पात्र, भोजन भादि ) वस्तुओं का पुरा किराया भी नहीं मिल सकता है, तो दुर्गतिमें गिरते समय तुझे किसका शरण होगा?,और. परलोकमें कौन सुख देगा ? इसकातूं विचार कर।" वसंततिलका.
विवेचन-ऊपर लिखे अनुसार बाह्याचार मात्र वेश रखने और तप, संयम आदि कुछ न करने अथवा तहन बाह्या'डंबर निमित्त करनेका क्या फल होता है ? इसका यहां विचार किया जाता है । गृहस्थद्वारा भोजन, वस्त्र, पात्र आदि यतिको मुफ्त मिलते हैं जिसके लिये कहा गया है कि ऊपर लिखे अनुसार दिखाव मात्रके लिये किये हुए तप संयमसे तो उसका भाड़ा तक नहीं चुकाया जा सकता है । अतएव हे यति ? तेरा कर्जा चुकाने निमित्त तेरे व्यवहारको बहुत उच्च बनानेकी आवश्यकता है। जो संसारके उपदेशक होने का दावा रखते हों उनका चारित्र तो इतना सरस और अनुकरणीय होना चाहिये कि उसमें दो भेद हो ही न सके । बाह्य देखाव दूसरा और भान्तरिक व्यवहार बहन दूसरा, यह बात शुद्ध दशामें चलनेवाले जीवोकी कल्पनामें