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अध्यात्मकल्पहम [प्रयोदश कारण ये वन्दन, नमस्कार उपर कहे हुए वृक्षको काटनेके लिये कुल्हाड़ेका कार्य करते हैं । इस वृक्षका नाश हुचा और यदि एसा करनेसे तुझे उस वृक्षका सहारा न मिला तो तू फिर इस संसारसमुद्रमें व्यर्थ भटकता रहेगा । यहाँ तुझे किसी भी प्रकारका भाश्रय न होगा।
वेरे शुद्ध वेशसे तेरा उत्तरदायित्व कितना है इसका तू विचारकर । संसार तेरेसे सेरी प्रतिज्ञाके अनुसार कितने उच्च व्यवहारकी भाशा रखता है इसको सोच । हे मुनि ! जरा अन्तरंग चतु खोलकर देख । ऐसा योग और ऐसी सामग्री तुझे फिरसे मिलना कठिन है । सोच विचारकर समय का सदुपयोग कर । उपलक्षणसे मुनिका अधिकार होते हुए भी श्रावकोंको विशेषतया इस श्लोकके भावार्थको विचारकर समझना चाहिये कि श्रावकपनका नाम धारण कर गुणों के न होने पर भी मारामारी कर धमाधमसे नोकारशी भादिके जीमण जीमना, अनेक प्रकार के प्रभावनाएं बिना हकके ही, अनीतिसे, पिना किसी गुणके, एक समयसे भी अधिक समय लेनेकी तुच्छताकर, उनके हकदार अपनी भात्माको समझना, यह बहुत विचार करने योग्य है । ऐसा विचार श्रावक भी अपने आत्मा के लिये इस अधिकार के हरेक स्थानमें करें।
लोकसत्कारका हेतु, गुण बिना गति. गुणांस्तवाश्रित्य नमन्त्यमी जना,. । ददत्युपध्यालयभैल्यशिष्यकान् । विना गुणान् वेषमृषोभिर्षि चेत् ,
ततष्ठकानां तव भाविनी गतिः॥ ८॥ "ये पुरुष तेरे गुणों को देखकर तेरे सामने भूकते हैं और