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अधिकार ]
यतिशिक्षा [ ५२१ कि जाय तो फिर क्या उपाय किया जाय ? जिस रसायनसे सब प्रकारकी व्याधियोंका नाश हो सकता हो यदि उससे ही व्याधिकी वृद्धि हो तो फिर सुखका अन्य क्या साधन हो सकता है ? अतएव धर्मके उपकरण पर भी ममत्व बुद्धि नहीं रखना चाहिये । उसके लिये अपने आत्माको कष्ट न पहुंचाना तथा किसी पर कंकास न करना चाहिये।
इसपर कुछ विचार करनेकी आवश्यकता है। इस विषयमें यह ध्यान रखना चाहिये कि एक मात्र ममत्व निमित्त की हुई धारणा शिघ्र ही नष्ट हो जाती है और संसारवृद्धि होती है। इस विषयमें कर्त्ता ओर अधिक स्पष्ट उपदेश करते हैं जिसपर पाठकोंको मनन करना चाहिये ।
धर्मोपकरणपर मूर्छा-उसके दोष. रक्षार्थ खल्लु संयमस्य गदिता
येऽर्था यतिनां जिनर्वासः पुस्तकपात्रकप्रभृतयो
धर्मोपकृत्यात्मकाः। मूर्छन्मोहवशात्त एव कुधियां
संसारपाताय धिक, स्वं स्वस्यैव वधाय शस्त्रमधियां __ यद्दष्प्रयुक्तं भवेत् ॥ २७॥
" वस्त्र, पुस्तक और पात्र आदि धर्मोपकरण के पदार्थ श्रीतीर्थकर भगवानने संयमकी रक्षा निमित्त यतियोंको बताये हैं परन्तु जो मन्दबुद्धि मूढ़ जीव अधिक मोहके वशीभूत हो.