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अधिकार ]
यतिशिक्षा . [५४५ ६ पहले भोगे हुए सांसारिक सुखविलासोंका स्मरण न करना चाहिये।
७ स्निग्ध, मादक वस्तु न खाना, अविकारी भोजन करना चाहिये ।
८ अविकारी भोजन भी अधिक न करना, केवल शरीर धारण निमित्त निर्वाह होने जितना प्रहण करना चाहिये ।
९ शरीरको विभूषित न करना । ३ ज्ञानादि तीन ।
शुद्ध अवबोध, शुद्ध श्रद्धा और निरतिचार व्यवहार ।
१२ तपस्या-छ बाह्य और छ अभ्यंतर । ... १ उपवास करना नहीं खाना-अनशन । २ कम खाना. ऊणोदरिका । कम वस्तुयें खाना-वृत्तिसंक्षेप । ४ विगयत्याग करना-रसत्याग । ५ शरीरको जिस क्रियासे क्लेश हो-कष्ट पड़े वह कायक्लेश । ६ शरीरके अंगोपांगको संकोचकर रखना संलीनता कहलाती है।
१ प्रायश्चित, २ विनय, ३ वैयावत्र, ४ बानाभ्यास, ९ ध्यान और ६ उत्सर्ग। ४ कषायत्याग ।
ये चरणसित्तरीके ७. भेद हुए। अब करणसित्तरीके ७० भेद लिखे जाते हैं। ४ पिण्ड, शय्या, वस्त्र और पात्र अकल्पनीय न लेना ।
पिण्डविशुद्धिके ४२ दोष रहित पाहार लेना ।
सोलह दोष पिण्डकी उत्पत्तिको लेकर लगते हैं। . पिण्ड शुद्ध हो फिर भी संयोगबलसे सोलह दोष प्राप्त हो जाते हैं।