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अधिकार ] यतिशिक्षा
[५३१ "चारित्र पालनेमें तुझे इस भवमें नियंत्रणा उठानी पड़ती है और परभवमें भी तिर्यच गतिमें, स्त्रीके गर्भ में अथवा नारकीके कुंभीपाकमें नियंत्रणा ( कष्ट, पराधीनपन.) सहन करनी होती है। इन दोनों प्रकारकी नियन्त्रणामें परस्पर विरोध है, अतएव विवेकपूर्वक दोनोंमेंसे किसी एकको ग्रहण कर ।"
उपजाति. विवेचन-दोनोंमेंसे एक न एक प्रकारका कष्ट तो सहन करना ही पड़ेगा। यहां दो प्रकारके दुःखों से किसी एकको अवश्य पसन्द करना है Choice between the two evils.नारकी तथा तिर्यचका कष्ट अत्यन्त असह्य और चिरस्थायी है, जबकि साधु जीवनमें नियंत्रणाका कष्ट अल्प, अल्पस्थायी और भविष्यके लिये हितकारक है । इन सबका विचार कर दोनोंमेंसे किसी एकको ग्रहण करना, परन्तु साथ ही साथ यह भी ध्यान में रखना कि तात्कालिक सुखसे आकर्षित न होकर परिणाम सुखका विचार करना। परिषह सहन करनेका उपदेश (स्ववशतामें सुख ) सह तपोयमसंयमयन्त्रणां,
स्ववशतासहने हि गुणो महान् । परवशस्त्वति भूरि सहिष्यसे, . न च गुणं बहुमाप्स्यसि कञ्चन ॥३५॥
" तू तप, यम और संयमकी नियंत्रणाको सहन कर । स्ववश रहकर ( परीषहादिका दुःख ) सहन करना अधिक
१ व्रत आदिके लिये सहन किया जानेवाला कष्ट तथा तीर्थंकरमहाराज, गुरुमहाराजकी आज्ञाका पराधीनपन ।
१ गुणों महान् इति स्थाने शिवं गुण इति वा पाठः । ..