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अध्यात्मकल्पद्रुम । [ त्रयोदश कर उनको संसारवृद्धिके कारण बनाते हैं उनको बारम्बार धिक्कार है । मूर्ख पुरुष द्वारा भकुशलतासे काममें लाया हुमा शस्त्र (हथियार) उनके खुदके ही नाशका कारण होता है।"
शार्दूलविक्रीडित. विवेचन-यह उपदेश अधिक स्पष्ट शब्दोमें किया गया है । मूर्छा ही परिग्रह है यदि ऐसा सोच लिया जाय तो फिर इस विषयमें और अधिक कहनेकी आवश्यकता नहीं है । सत्य बात तो यह है कि यह जीव यह नहीं जानता है कि सुख पदार्थप्राप्तिमें नहीं है किन्तु संतोषमें है। सर्वांशमें इस हकीकतकी सत्यताको देखते हुए साधुका व्यवहार ऊपरके श्लोकमें जैसा लिखा गया है उसके तहन विपरित ही होता है। यहाँ तो भगवानने दीर्घविचार कर रखनेकी आज्ञा प्रधान की हुई उपधि-पात्रां या पुस्तकादि वस्तुको रखनेका उद्देश संयमप्रवृत्तिका ही है; परन्तु वह उसी ममतासे संसारकी वृद्धि करता है, उसमें फँसता है और फिर ऊपर कभी नहीं उठने पाता है । शस्त्रसे दूसरोंको डराया जाता है, हराया जाता है और प्राण भी लिये जाते हैं; परन्तु बन्दुकका उचित उपयोग करना न जाननेवाले यदि बारुद भरकर यदि अपनी ही ओरको निशान लगावे तो तो उससे अपने जीवनसे भी हाथ धो बैठते हैं, इसीप्रकार संसारको नाश करने के प्रबल साधनरूप धर्मोपकरण पर मुर्छा रक्खी जाय तो उससे बहुधा यतिजीवनका ही नाश होता है ।
हे मुनि ! अनुभवीद्वारा ऊपर लिखित शब्दोंपर बराबर मनन और निदिध्यासन कर। इन चमत्कारी चार लकीरोंमें बहुत ही उत्तम शिक्षाका समावेश किया गया है। बुद्धिमान प्राणियोंके लिये और अधिक कहनेकी आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।