________________
अधिकार
पतिशिक्षा भावना हो, उनका वियोग कष्टकर प्रतीत हो, इनका उत्तराधिकारी कौन होगा ? इसके निर्णय करनेकी सत्ता अपने में होना माना जावे या सारांशमें कहें तो साक्षीभाव उपरान्त स्वामीत्वक किसी भी प्रकारके अधिकार तथा सत्ता रखनेकी अभिलाषा हो, शीघ्र ही वह परिग्रहकी कोटिमें आ जाता है। ये उपकरण साधुपनमें स्थिर करनेकी अभिलाषासे, संयमकी रक्षा करनेकी इच्छासे, और मोहराजापर विजय प्राप्त करनेके लिये शस्त्ररूपसे प्रयोग करनेके इरादेसे रखनेकी आज्ञा है, इसके स्थानमें वे ही जब संसारमें भ्रमण कराने वाले बनजावें तो कितनी भारी हानि होगी ? इसका स्वयं विचार कीजिये । गृह, स्त्री, पैसे आदिका ममत्व छोड़ना बड़ा कठिन है, इन सबका त्याग करके भी फिर एक मात्र पन्ने, पुस्तकपर ममत्व रखान कितनी भारी कमजोरी है ? परन्तु यदि उनपर थोड़ासा विचार किया जाय तो उनका भी त्याग हो सकता है । इसपर पूर्वकालीन महात्माओंके दृष्टान्त लिये जाय तो सब कार्य पूरा हो सकेगा और केवल स्वहितनिमित्त अन्तमें हुए पू. आनन्दघनजी और चिदानन्दजीके दृष्टान्तोंका अवलोकन करने मात्रसे भी परिप्रहत्यागका नमूना हृदयप. टलपर अंकित होजाता है।
यह तो समझमें भी नहीं आता है कि जो धर्मके नामपर म्याने पालकी, या गाड़ी-घोड़ें आदि रखते हैं। उनकी भला क्या दशा होगी ? संसारसमुद्रके तट निकट आनेपर भी गर्दनमें पत्थर लटकाकर फिरसे गिरनेवाले ये मूढ़ जीव दश बीस वर्षकी विनश्वर अनियमित साहिबीके लिये अनन्तकाल तक दुःखपहुचानेवाले संसारकी वृद्धि करते हैं । उनको निम्नस्थ श्लोक पर ध्यान देना चाहिये । ..
सुखिनो विषयतृप्ता, नेन्द्रोपेन्द्रायोप्यहो।। भिक्षुरेका सुखी लोके, ज्ञानतृप्तो निरञ्जनः ॥