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अधिकार] यतिशिक्षा
[ ५११ वन्दना करते हैं और पूजा करते हैं जब तू कुगतिको प्राप्त होगा तो तेरी हँसी उड़ायेगें-तेरा पराभव करेंगें ।"
वंशस्थविल. ___ .विवेचन-गुणगान, वंदन, पूजन आदि इन सब गुणोंके होनेपर ही शोभा देते हों इतना ही नहीं अपितु परमवमें भी महादुःख देते हैं । कृतकर्म तो भोगने ही पड़ते हैं। यहाँ तो बाह्य दंभ कर सकते हैं परन्तु परभवमें जब इनका फल भोगना पड़ेगा तब बड़ी मुश्किल वितेगी क्योंकि वहांपर किसी भी प्रकारका दंभ काम न देगा।
गुण विना वंदन पूजन-हितनाशक. दानमाननुतिवन्दनापरै___ मोदसे निकृतिरञ्जितैर्ज नैः। न त्ववैषि सुकृतस्य चेल्लवः,
कोऽपि सोऽपि तव लंव्यते हि तैः ॥२१॥ ___ "तेरी कपटजालसे प्रसन्न होकर मनुष्य तुझे दान देते हैं, नमस्कार करते हैं या चन्दना करते हैं उस समय तू प्रसन्न होता है। परन्तु तू यह नहीं जानता है कि तेरे पास जो एक लेशमात्र सुकृत्य है उसे भी वे लूटकर ले जाते हैं।"
रथोद्धता. विवेचन-बाह्यवेष, झूठे उपदेश और पाड़म्बरद्वारा तू कपटजाल फैलाता है, इस जालमें अजान पक्षियों के समान पुरुष भूलसें फंस जाते हैं और तेरेको दान, मान आदि भक्ष्य पदार्थ भेंट करते हैं तब तू बहुत प्रसन्न होता है, परन्तु हे मूर्ख ! सेरेमें जो कुछ लेशमात्र पुण्यका अंश होता है उसे भी तू खो देता है, महान अप उपार्जन करता है क्या इसका भी तुझे भान है ?