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५१०] अध्यात्मकल्पछुम
[प्रयोदश "तू गुणहीन है फिर भी लोगोंसे बन्दन, स्तुति, आहारपानीके ग्रहण भादिको खुशी होकर प्राप्त करनेकी अभिलाषा रखता है, परन्तु याद रखना कि पाड़े, गाय, घोड़े, ऊंट या गधे आदिका जन्म लिये बिना तेरा उस कजसे छुटकारा पाना असम्भव है।" वंशस्थ,
विवेचन-कर्जको बराबर तौल कर चुकाना होगा, लेनदेन मिलाना पड़ेगा और बराबर पूरा २ हिसाब करना होगा। तू यह स्वप्नमें भी ख्याल न करना कि लोग तेरेको वन्दना करते हैं, पूजते हैं, भोजन प्रदान करनेको रास्ता रोककर अपने गृह ले जाते हैं वे सब तुझे मुफ्त पच जायगा । यदि तू यहाँ पर तेरे कर्तव्यको पूरा करेगा तब तो तू उन सबके ग्रहण करनेका अधिकारी है, नहीं तो आनेवाले भवमें बैल या पाड़ा बनकर भार ढोदो कर कर्जको अदा करना होगा, अथवा गधा या घोड़ा होकर भार खीचना पड़ेगा, भडुचके पाड़ा बनकर कर्ज चुकाना पड़ेगा या बग्गीका घोड़ा बनकर कष्ट सहकर सामान ढोना पड़ेगा । अतएव बिना गुणके स्तुतिकी अभिलाषा न रखकर गुणके लिये प्रयास कर । पाड़ेके पिछे पूंछ स्वतः चली आती है इसीप्रकार गुणके पीछे स्तुति तो स्वतः चली पायगी ।
गुण विना बन्दन पूजनका फल. गुणेषु नोद्यच्छसि चेन्मुने ! ततः,
प्रगीयसे यैरपि वन्यसेऽय॑से । जुगुप्सितां प्रेत्य गतिं गतोऽपि ते,
हसिष्यसे चाभिभविष्यसेऽपि वा ॥२०॥
" हे मुनि ! यदि तू गुण प्राप्त करनेका यत्न न करेगा तो वे ही पुरुष जो तेरे गुणोंकी स्तुति करते हैं, तुझे