________________
अधिकार ]
यतिशिक्षा देता है तो हृदयमें यह विचारने लगता है कि सब भादमी मेरे इस कार्यको क्यों कर जाने और मेरी इस कार्य के लिये सराहना करें। इसप्रकार यह जीव कोई ऐसा कार्य नहीं करता है कि जिससे अपना हित हो या यदि कुछ करता है वो उसने भी धो डालता है इस लिये उसको कुछ लाभ नहीं हो सकता है, वह तो एक मानरूप हाथोपर चढ कर संसारको मन्द स्थितिकाला समझता है । संसारी जीव भी बहुधा अभिमानी होते हैं इससे यह बेचारा बारम्बार गिर जाता है, फिर उठता है और इस प्रकार बार बार गिरता उठता अपने जीवनको पूरा कर देता है। हे साधु ! तू एक बातका अवश्य विचार कर । तुझे इस समय कितने पुरुष परिचित हैं ? सामान्य पुरुष प्रायः दो हजार पुरुषों से अधिकसे परिचित नहीं होता है । अब इस समयकी खोजित पृथ्वीपर एक अरब और साठ करोड़ के करीब पुरुष हैं, उनमेंसे यदि दो हजार पुरुष तेरा आदरसत्कार करे या न करे इसमें क्या दम ( सार ) है ? तू कौन है ? तू गुण वन्द है ? भूल गया । गुणचन्द तो इस शरीरको आत्माके सम्बन्धके लिये कहा गया है । तुझे यहां कितने समय तक रहना है ? गुणचन्द रूपसे यदि तुझे मान मिलेगा तो वह कितने समय तकका है ? फिर तू कहाँ जायगा ? तेरे गुणचन्द नामकी प्रतिष्ठा और तेरेमें क्या सम्बन्ध होगा ? इस दृष्टि से विचार करेगा तो जान पड़ेगा कि बन्दन, पूजन या लोकसत्कारमें कुच्छ दम जैसा नहीं है। तो फिर दम किसमें है ? गुणमें-योग्यतामें-कर्तव्यपालनमें है। इस गुणप्राप्तिके प्रयासमें आनन्द है, क्योंकि वृत्ति शांत है; गुणप्राप्तिमें तो भद्भुत आनन्द है और उसके अनुभवमें तो वर्तमान तथा भविष्यमें भी पानन्द है। इसके साथ ही साथ लोकसत्कारके लिये प्रयास, निष्फलता, लोगोंका अभिमान इन