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अधिकार ]
यतिशिक्षा
[५०३ ११-१६ तक इन छ श्लोकोमें बतलाये उपदेशपर बहुत मनन करनेकी आवश्यकता है । आवश्यक योग, वस्तु, पात्र, पुस्चकादि धर्मोपकरण सिवाय परिग्रह न रखनेका विशेषतया मुनिको उपदेश किया गया है । यह सन्देहरहित बात है कि मुनिमार्ग महाकष्टकारी है, परन्तु एक समय उस मार्गके कर्तव्योंका भार सिरपर उठा लेनेके पश्चात् उसके अनुसार व्यवहार रखने के लिये जीव प्रतिज्ञासे बंधा हुआ हो इतना ही नहीं अपितु यदि उसकी सिमासे यदि किंचित्मात्र भी इधरउधर हठ आता है तो महान कोका बन्धन करता है । इसके कहने में जो कुछ कठोर शब्दोंका प्रयोग किया गया है वह सहेतुक है और जैसे पुत्रको कोई अपराध न करने पर भी भविष्यमें किसी प्रकारकी भूल न करनेके लिये सचेत रहनेको डाट उपर बतलाई जाती है ये शब्द भी उसीप्रकार है । भूल करने पर बुरा-भला कहनेसे बुद्धिमान शिष्य भूल सुधारनेका प्रयास करते हैं परन्तु अपने शिष्यपनको ही तिलांजलि नहीं दे देते हैं। इसीप्रकार इस उपदेशसे भून सुधारनेकी आवश्यकता है परन्तु इससे घबराकर सर्व संयम भारको तिलान्जली दे सिरपर पगडी पहन, गृहस्थी बन ऐशाराम करने-कराने के लिये इस उपदेशका उपयोग न करें। साध्यदशामें ही रहकर सिद्ध दशाको ध्यानमें रखते हुए इस उपदेशका भलिभांति पालन किया जाय तो ही लाभ होनेकी संभावना है, नहीं तो शास्त्रमेंसे एक काना निकाल देनेसे शस्त्र बन जाने के सदृश है । शास्त्रमें लिखे अशुद्ध अभ्यासक्रमके वचनों और ऐसे उपदेशके कठोर वचनोंके आधारपर अविरोधीपनसे व्यवस्था बांधनेकी और विचार करनेकी इस युगमें बहुत आवश्यकता है। मूल और उत्तरगुण सम्बन्धी दुषणोंके सेवन करनेकी दिनप्रतिदिन वृद्धि होचेपर यदि किसी प्रकारकी साध्यष्टि न रक्खी जाम