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अधिकार ] गुरुशुद्धिः । [६९
इस श्लोकपर मनन करना । इसको ' लाइनकलीभर' न दे । थोड़ा-सा विचार करना कि तू कौन है ? कहां है ? किसके परमें है ? तेरा क्या है ? तू किसका है ? यह सब झगड़ाफिसाद किस लिये है ? ये प्रश्न रात्रिको सोते समय अथवा सवेरे उठते समय विचारना, इससे बहुत लाभ होगा।
- देव-संघादि कार्यमें द्रव्यव्यय. न देवकार्ये न च सङ्घकार्ये,
येषां धनं नश्वरमाशु तेषाम् । तदर्जनायैईजिनैर्भवान्धौ,
पतिष्यतां किं त्ववलम्नबं स्यात् ? ॥१७॥
"धन-पैसे एकदम नाशवंत है । जिनके पास पैसे हो वे यदि उनको देवकार्यमें अथवा संघकार्य में खर्च न करे तो उनको सदैव द्रव्य प्राप्त करने निमित्त किये हुए पापोंसे संसारसमुद्र में पड़नेपर किनका आधार होगा ?" उपजाति,
विवेचन-पैसोंके उपार्जन निमित्त प्राणी कैसे कैसे कार्य करता है वे अपने अनुभवसे बाहर नहीं है। इनके लिये यह भी कहे तो उचित होगा कि पैसोंके लिये ऐसा कोई भी अयोग्य काम नहीं हैं कि जिसको प्राणी न करते हों। इसपर विस्तार. पूर्वक विवेचन धनममत्वमोचन अधिकारमें कर दिया गया है । अपितु पैसे कितने अस्थिर है, नाशवन्त है, यह भी हम पढ़ चुके हैं, अनुमवगम्य है और महाविग्रहसे बताया गया है । इसप्रकार महान् पापसे एकत्र किये हुए पैसे नाशवंत हैं। पैसे बांधकर नहीं रखे जासकते हैं, पुण्यप्रकृतिके फिरनेपर हजारों, लाखों या करोडोकी पूंजी एक क्षण में-बहुत थोड़े-से समयमें
१ त्वस्थाने न्व इति वा पाठः ।