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अध्यात्मकल्पद्यम [बादश हुई न हुई हो जाती है । अन्तमें भी इस सम्पत्तिको यहां ही छोड़कर खुले हाथों चला जाना पड़ेगा।
पैसे प्राप्त करते समय अनेक प्राश्रव सहन करने पड़ते हैं, हिंसा और असत्यका बड़ा भाग उस समय होता है, और उसके उपरान्त अनेक क्रियायें होती हैं । ये सब पापकर्म जीवको संसारसमुद्रमें फेंक देते हैं । उस समय यदि कोई अवलम्बनसहारा हो तो जीव ठहर जाता है, नहीं तो पेंमें बैठ जाता है । ___प्राप्त पैसोंको जो ज्ञानोद्धार, जीर्णोद्धार, शासनोद्वार, देवपूजा, प्रतिष्ठा, तीर्थयात्रा, अष्टाह्निका महोत्सव आदिमें व्यय किये जाय तो संसारमें गिरनेपर ये एक प्रकारके अवलम्बनरूप होते हैं। इसीप्रकार यदि धनको जो स्वामिवात्सल्यमें अर्थात् गुणी स्वामीबन्धुओंकी भक्तिमें या निराश्रित धर्मबन्धुओंको
आश्रय देनेमें अथवा कान्फरेन्स आदि महान योजना बनाकर उनकेद्वारा शासनके अभ्युदयकी वृद्धिमें अथवा निज धर्मानुयायीयोंको धार्मिक तथा व्यवहारिक शिक्षण देनेमें जो व्यय किये जावे तो संसारमें पड़ते इस जीवको अवलम्बन मिलता है ।
द्रव्यके साथ अपनी शक्तिका उपयोग इसप्रकार हानि तथा लाभ पहुंचानेवाला हो जाता है । धन मिलना कोई नई बात नहीं है । इस जीवको कईबार धन मिला होगा, परन्तु अभिमान तथा दुर्व्यसनमें धनको व्ययकर यह नीचे गिर जाता है, फिर धन एकत्र करता है और फिर उसका पतन हो जाता है । इस चक्रभ्रमणसे बचनेका यदि कोई उपाय हो तो अपने धनको समुदायके काममें -लोगोंकी भलाई के लिये व्यय करना ही है। अपने आपकी कुछ परवाह नकर कष्ट सहते. हुए भी दूसरोक्को लाभ पहुंचाना चाहिये, इसको स्वार्पण कहते
1 Self-sacrifice.