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अध्यात्मकल्पद्रुम [ द्वादश - "जिसप्रकार सिंहने अपने जातिके प्राणियोंको साथमें • लेकर तराया था उसीप्रकार कोई ( सुगुरु ). अपने जाति
भाई (भव्यपंचेन्द्रिय)को साथमें. लेकर इस संसारसमुद्रसे तराते हैं; और. जिसप्रकार शियाल: अपने जाति भाइयों के साथ डूब मरा उसीप्रकार कोई (कुंगुरु) अपने साथ सबको नरकादि अनंत सागरमें डूबा देते हैं। अतएव ऐसे शियाल जैसे पुरुष तो न मिले तो भी अच्छा है।" उपेन्द्रवज्र,
विवेचन-यहाँ पहिले और चौथे प्रकारके गुरुका वर्णन किया गया है । पहले प्रकारके गुरु स्वयं तैरते हैं और अपने आश्रितको तैराते हैं । वे जहाजके समान हैं । चोथे प्रकार. के गुरु स्वयं डूबते है और आश्रितको भी डूबोते हैं। वे कुगुरु पत्थरके समान हैं।
___ इस संसारमें भटकते हुए जब किसी समय सुगुरुका संयोग होता है तब वे इस जीवको उपदेश देकर, संसारसे उद्विग्न चित्तवाला बनाकर अन्तमें उसे वैराग्यवासितकर संसारसे सलाम कराते हैं। ऐसे गुरु सिंहके समान हैं। टीकाकार इस सम्बन्ध पंचोपाख्यानका प्रसिद्ध कथा कहकर बतलाते हैं कि" धनी झाड़ियोंसे आच्छादित एक बड़ा जंगल था। वहाँ भयका कारण जानकर सर्व बनवासी प्राणियोंने मिलकर सिंहको राजाकी पदवी दी। अब किसी समय उसी जंगल में महादावानल.' का कोप हुआ, चारों तरफ अग्नि फैलकर धाय धाय करने लगी
और बचनेका कोई साधन न दिखाई दिया। उस समय इस महान वनराजाने सब प्राणियोंको अपने साथ लिये और नदीके समीप गया । वह नदी भरपूर तेजीसे बह रही थी फिर भी सर्व वनवासी प्राणियों को अपनी पूंछ पकड़ा दी और एक छलंग मारकर सबको नदीके दूसरे किनारेपर सुरक्षित पहुंचा दिये और