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अधिकार ] गुरुशुद्धिः
। ४५९ आनंद प्राप्त होता है । ऊपर लिखे सात सद्गुणोंमेसें कोई भी सद्गुण महालाभका कारण है, परन्तु साध्य दृष्टिवान् पुरुष जब इच्छापूर्वक उनमेंसे दो-चार अथवा सातोंका भादर करे तथा अनुसरण करे तब तो उनके फलमें उसके मनमें महामानंदका होना शंकारहित है । उस समय मनमें ऐसी इच्छा होती है कि मैं एक महान कार्य कर रहा हूं एक, महान् कर्तव्य पुरा कर रहा हूं।
यहां प्रस्तुत विषय गुरुदेवपूजाका है। उनकी ओर भाक्तिभाव रखनेसे संपत्ति प्राप्त होती है यह बतानेके लिये उनके सहचारी सद्गुणों तथा क्रियाओंको प्रसंगवश बताया गया है।
विपत्तिके कारण. .जिनेष्वभक्तिर्यमिनामवज्ञा, ___ कर्मस्वनौचित्यमधर्मसङ्गः । पित्राद्युपेक्षा परवञ्चनं च,
सृजन्ति पुंसां विपदः समन्तात् ॥ १२ ॥
" जिनेश्वर भगवानकी ओर अभक्ति (भाशातना), साधुभोंकी अवगणना, व्यापारादिमें अनुचित प्रवृत्ति, प्रधमर्मीका संग, मातापिता भादिकी सेवा करने में उपेचा (अव. हेलना) और परवंचन-दूसरोंको ठगना ये सर्व इस प्राणीके लिये चारों ओरसे विपदायें उत्पन्न करते हैं।" उपजाति.
विवेचन-१ जिनेष्वभक्ति-रागद्वेषरहित, कोको नाश करनेवाले, द्वादशगुणालंकृत श्रीजिनेश्वरमहाराजकी ओर भभक्ति, उनके वचनोंकी अवहेलना करना, उनकी अरुचि, उनके साकार स्वरूपका विगोपन, उनका अन्य किसी प्रकारसे अनादर, उनकी ओर अप्रीति और अविनय ।
२ गुरुकी अवज्ञा:-गुरुमहाराज शुद्ध मार्ग बतलाने