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अधिकार]
धर्मशुद्धिः विषयपर कुछ कहनेसे प्रथम एक बातपर ध्यान देनेकी भावश्यकता है । उपदेशतरंगिणीमें कहते हैं कि " नागिलको छोड़नेवाले भवदेवके भाई भवदत्तके समान लज्जासे धर्म होता है, मेतार्य मुनिको दुःख देनेवाले सोनीके समान भयसे धर्म होता है, चण्डरुद्राचार्यके शिष्यके समान हास्यसे धर्म होता है, स्थूलभद्रपर मात्सर्य करनेवाले सिंहगुफानिवासी साधुके समान मात्सर्यसे धर्म होता है, आर्य सुहस्तिसूरि महाराजसे प्रतिबोध किये हुए द्रमकके समान लोमसे धर्म होता है, बाहुबलि के समान हठसे धर्म होता है, दशार्णभद्र, गौतमस्वामी, सिद्धसेनदिवाकरके समान अहंकारसे धर्म होता है, नमि-विनमिके समान विनयसे धर्म होता है, कार्तिक सैठके समान दुःखसे धर्म होता है, ब्रह्मदत्तचक्रीके समान शृंगारसे धर्म होता है, भाभीर तथा भार्य्यरचित आचार्यके समान कीर्तिसे धर्म होता है, गौतम. स्वामीसे प्रतिबोध किये हुए १५०३ तापसोके समान कौतुकसे धर्म होता है, ईलापुत्रके समान विस्मयसे धर्म होता है, अभयकुमार तथा आर्द्रकुमारके समान व्यवहारसे धर्म होता है, भरतचक्री तथा चन्द्रावतंसके समान भावसे धर्म होता है, कीर्तिधर, सुकोशल आदिके समान कुलाचारसे धर्म होता है, और जम्बू. स्वामी, धनगिरि, वनस्वामी, प्रसन्नचन्द्र तथा चिलातीपुत्रके समान वैराग्यसे धर्म होता है ।
"धमाके लिये गजसुकुमाल, कुरगडुमुनि, वीरप्रभु, पार्श्वप्रभु, स्कंधमुनि आदिके दृष्टान्तोंको जाने । शीलके लिये सुदर्शन बैठ, मल्लीप्रभु, नेमनाथजी, स्थूलभद्र, सीता, द्रौपदी, राजमतीके दृष्टान्त प्रसिद्ध हैं । प्रभाविकपनके लिये श्री हेम. चन्द्राचार्य, जीवदेवसूरि, कालिकाचार्य, जिनप्रभसूरि, विष्णुकुमार, ५५