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अध्यात्मकल्पद्रुम [ एकादश यशोदेवसूरि आर्यखपुटाचार्य, बप्पभट्टिसूरि, पादलिप्तसूरि, धर्मघोषसूरि, मानदेवसूरि, मानतुंगसूरि, हरिभद्रसूरि आदिके दृष्टान्त प्रसिद्ध हैं । अधिक क्या कहें ? सर्व प्रकारसे किये हुए धर्म महा लाभकारी है।"
इस बड़े वाक्यके लिखनेका यह कारण है कि धर्म किसी विशेष अमुक कारणसे ही प्राप्त नहीं हो सकता है, वह किसी भी हेतुके आश्रयसे हो सकता है, और उन उन प्रसंगोंके अनुसार वह फल देता है। सम्पूर्ण अधिकारमें यह ही बात येन केन प्रकारेण बताई गई है । धर्मसे जैसे कीर्ति, विद्या और लक्ष्मी मिलती है उसीप्रकार धर्मसे एकान्त शांति प्राप्त हो सकती है। ऐसे धर्मको किसी कारणसे न करने तथा धर्मकी किसी भी बाह्य क्रियाका निषेध करनेका उद्देश ग्रन्थकर्ता तथा विवेचनकर्ताका नहीं है । मुख्य उद्देश यह है कि तुम जो कुछ भी करो उसे सोच-समझकर करो, अल्पमें या अशुद्ध में संतोष न करो। इस जमानेकी खूधी अथवा खोड़-यह है कि असंतोष रखना
और किसी कार्यको पूरा न करना । व्यवहार में भी अपने कार्यको पूरे करनेवाले बहुत कम है । यद्यपि धर्म करनेकी
आवश्यकताको सब कोई स्वीकार करते हैं, वे सब समझते हैं कि राज्य के वैभव या संततिसुख, शरीरसंपत्ति या सुलक्षणी भार्या, शांतस्थान या फलद्रुम बागबगीचा, मानसिक या शारीरिक उपाधिरहितपन जो जीवको प्राप्त होते हैं वे धर्मके कारण ही होते हैं तो फिर उसको शुद्धरूपसे करना चाहिये । यहां जो उद्देश है वह किसी भी प्रकारकी क्रियाका निषेध करनेका नहीं है परन्तु शुद्ध रीति अनुसार करनेका है।
___ इस अधिकारमें मुख्यतया तीन बातोंपर ध्यान आकर्षित किया गया है।