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अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकारः [३८३
८ सिंह-सिंहको पकड़ने के लिये एक बड़े कटहरेके दो विभाग बनाये जाते हैं। एक भागमें एक बकरेको बन्द करके मजबूतीसे रख देते हैं। दूसरा भाग खुला रख कर उसके उपर पुरुष बैठता है । सिंह लोभसे आता है और बकरेके मांससे ललचा कर ज्योहि कटहरके अन्दर प्रवेश करता है त्याही उपरका पुरुष दरवाजा बन्द कर देता है और सिंह कैद होजाता है, अथवा बकरा खुला रखते हैं तो उसको मारनेके लिये जाता हुधा सिंहको मार दिया जाता है । यह जीभके वशीभूत होनेका दुःख है।
इसप्रकार एक एक इन्द्रियके वशीभूत होनेसे उक्त तिर्यच मरणकष्ट जैसा अथवा मृत्युको ही प्राप्त होते हैं। उनमें समझने की शक्ति कम है । तू समझदार है, संसारके स्वरूपको जानता है फिर भी यदि मोहके वशीभूत होकर इन्द्रियोंपर अंकुश नहीं रखेगा तो मनपर भी अंकुश न रह सकेगा तो फिर सब परिश्रम लग भग व्यर्थ ही होगा। अतएव चेत, देख, जागृत हो और विचार कर।
प्रमादका त्याज्यपन. पुरापि पापैः पतितोऽसि दुःख
राशौ पुनर्मूढ ! करोषि तानि । मजन्महापङ्किलवारिपूरे,
शिला निजे मूर्ध्नि गले च धत्से ॥१५॥
" हे मूढ ! तू पहले भी पापोंके कारण दुःखोंकी राशीमें गिरा है और फिर भी उन्हीका पाचरण करता है। अत्यन्त कीचड़वाले भरपूर पानी में गिरते गिरते वास्तवमें तूं तो तेरे गले और मस्तक पर बड़ा भारी पत्थर बांधता है ?"
उपजाति.