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अधिकार] . धर्मशुद्धिः . [११३
. ये सब वस्तुयें सुकृत्यमें मैखरूप है, संसारमें भ्रमण करा. नेवाली है । यद्यपि यह पूरा लास्ट नहीं है, फिर भी सप मुख्य मुख्य दोषोंकी संख्या इसमें आ जाती है। अब इनमेंसे कितने ही सुकृत्योंमें मैलरूप मनोविकारक विषयमें यहाँ वर्णन किया जाता है।
__ परगुणप्रशंसा. यथा तवेष्टा स्वगुणप्रशंसा,
तथापरेषामिति मत्सरोझी । तेषामिमां संतनु यल्लभेथा
स्तांनेष्टदानाद्धि विनेष्टलाभः ॥३॥
" जिस प्रकार तुझे अपने गुणोंकी प्रशंसा होना अच्छा जानपड़ता है इसीप्रकार दूसरोको भी उनके गुणों की प्रशंसा होना अच्छा लागता है। इसलिये मत्सर छोड़ कर उनके गुणोंकी प्रशंसा भलिभाँति करना सीख जिससे तुझे भी यह प्राप्त हो सके (अर्थात् तेरे गुणोंकी भी प्रशंसा हो सके ) कारण कि प्रिय वस्तु दिये बिना प्रिय वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती है।"
उपजाती. विवेचन-ऊपर यहां बताया गया था कि स्वगुणप्रशंसा मैलरूप है; अब यहाँ यह बताया जाता है कि जिससे वह मलेरूप न हो और मिल भी सके । हे भाई ! यदि तुझे अपने गुणोंकी प्रशंसा करना हो तो तू स्वयं दूसरोंके गुणोंकी प्रशंसा करना सीख; क्यों कि मनुष्यस्वभाव.सबका-एकसा है । दुनियाके नियमानुसार ' राखपत और रखापत ' अरस्परस होनेसे यदि तू अपनी प्रिय वस्तु दूसरों को देगा तो वे भी अपनी प्रिय वस्तु तुझे देगें। सबको अपने गुणों की प्रशंसा प्रिय होती है यह तू