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अधिकार ] : धर्मशुद्धिःएक सुकृत्य करनेसे पहिले अथवा करते समय उसे गुप्त रखनेसे अनेक प्रकारके लाभ होते हैं । अभिमान न होना बहुत बड़ा लाभ है, कारण कि अभिमानसे सुकृत्योंका फल यहां ही रहजाता है । संसारमें कीर्ति हो या अधिक हुआ तो देवगति प्राप्त हो, परन्तु निर्जरा होना कठिन है। इसके उपरान्त गुप्त सुकृत्य करते समय अपूर्व मानसिक आनंद होता है, आत्मस्वपसमें रमपता होती है और कर्तव्यपालनका शुद्ध भान होता है-ये सब लाभ भिन्न ही हैं।
स्वगुणप्रशंसासे लाभ कुछ भी नहीं है. स्तुतैः श्रुतैर्वाप्यपरैर्निरीक्षितै
गुणस्तवात्मन् ! सुकृतैर्न कश्चन । फलन्ति नैव प्रकटीकृतैर्भुवो,
द्रुमा हि मूलैनिपतन्त्यपि त्वधः ॥ १० ॥
" तेरे गुणों तथा सुकृत्योंकी दुसरे स्तुति करे अथवा सुने अथवा तेरे उत्तम काय्यौँको दूसरे देखे, इससे हे चेतन! तुझे कुछ भी लाभ नहीं होता है। जैसे कि-वृक्षके मूलको उघाड़ा कर देनेसे वह नही फलता है, परन्तु ऊलटा उखड़ कर पृथ्वीपर गिरजाता है । ( इसीप्रकार उत्तम कार्य भी प्रगट कर देनेसे पृथ्वीपर गिरते है अर्थात् शक्तिहीन होते हैं)"
वंशस्थविल. विवेचन-एक पुरुष ने एक सुन्दर वृक्ष बोया और विचारा कि इसके स्वादीष्ट फल होंगे; परन्तु इसका मूल कैसा है यह देखनेकी इच्छा हुई । यह सोचकर दूसरोंको बताने निमित्त तथा खुदके देखने के लिये मूलपर जो मिट्टी-कचरा पादिया