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३८२] अध्यात्मकल्पद्रुम
[ दशवाँ पक्षी अन्नके दानोंको देखते हैं। लोभीका एक नेत्र ही खुला हुआ होता हैं, अतएव वह फैलाइ हुई झालको नहीं देख पाता है । बेचारे अनेकों पक्षी इसप्रकार झालमें फँस जाते हैं। यह दुःख जिवाके वशीभूत होनेके कारण होता हैं।
५ सर्पः-कर्णके वशीभूत होकर सर्प बांसरीका शन्द सुनने को अपने बिलमेसे बाहर आता है और फिर सर्परा उसे पकड़ लेता है और उसे जन्मपर्यन्त उसका बन्दी बनना पड़ता है। यह कर्णके वशीभूत होनेसे बन्दी होनेका दूसरा दृष्टान्त हुा ।
६ मच्छी-मच्छीमार लोहेंके आँकडेंमें खानेका पदार्थ लगाकर उसको जलाशयमें डाल देता है । मच्छी उस पदार्थके रससे आकर्षित होकर उसको खानेके लिये
आती है । वह पदार्थ खाना तो दूर रहा किन्तु वह आंकड़ा तालूमें घुस जाता है और मच्छी मृत्युको प्राप्त होती है । जीभके वशीभूत होकर मरनेका यह दूसरा दृष्टान्त हैं।
७ हाथी-हाथीको निम्न लिखित प्रकारसे पकड़ते हैं । जब उसको पकड़ना होता है तब अत्यन्त दूर स्थानपर एक हाथिनीको खड़ी कर देते हैं, और उसके आगे एक बड़ा गढ़ा खोद देते हैं। कितनी ही बार एसे गडैमें कागजकी हाथिनी बनाकर रख देते हैं और हाथिनीका मूत्र इधरउधर छिड़क देते हैं, जिसकी गन्धसे आकर्षित होकर हाथी वहाँ आता है । गडेमें तृण आदि भर कर ऊपरसे उसे ढक देते है, इस लिये हाथी जैसा दूरसे आता है वसा ही हथिनीको देखकर कामविकारके वशीभूत होजाता है। अतएव दौड़ता दौड़ता जब हाथिनीके समीप जाता है तो गडेमें गिर जाता है; जिससे उसको बन्धन
आदि महादुःख प्राप्त होते हैं । यह दुःख स्पर्शेन्द्रियके वशीभूत होनेसे प्राप्त हुआ है।