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३०८ ] अध्यात्मकल्पद्रुम
[नवमाँ करते समय उसके दाँतोंके बीचमें अन्तर होनेसे असंख्य छोटी छोटी मच्छलिये भी पानीके साथ ही साथ निकल जाती हैं । उस समय भौंहमें स्थित तंदुलमत्स्य वहाँ बैठा बैठा विचार करता है कि यदि मैं जो इतने बड़े शरीरवाला हूँ तो एक भी मच्छलीको वापीस न जाने दूं। ऐसा विचार करनेसे तेतीस सागरोपमका आयुष्य बांधकर वह सातवीं नरकमें जाता है ।
जीरण शेठने श्री महावीर भगवानको पारणा ( भोजन ) करानेकी इच्छासे ही शुभ भावना धारण कर बारहवें देवजोकको प्राप्त किया और यदि दैवदुंदुभी नहीं बजी होती तो वह थोडेसे समयमें ही मोक्षको प्राप्तकर लेता ।
इन तीनों दृष्टान्तोंसे यदि मन वशीभूत होजावे तो मोक्ष सुगमतासे प्राप्त हो सकता है और मन वशीभूत न हो सके तो समझना चाहिये कि नरक मिलेगा। इस सम्बधमें दूसरे भी अनेकों दृष्टान्त हैं । इन दृष्टान्तोंका यह तात्पर्य है कि इस प्रकारकी मनकी स्थिति होती है । उसको वशमें करके उसका ठीकठीक उपयोग किया हो तो उससे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है । इसलिये कार्यासिद्धिका दूसरा सोपान यह है कि यदि तुमको अव्याबाध सुखकी अभिलाषा है तो मनको वशमें करनेवाले पथके पथिक बनों।
संसारभ्रमणका हेतु-मन. सुखाय दुःखाय च नैव देवा,
न चापि कालः सुहृदोऽरयो वा । भवेत्परं मानसमेव जन्तोः ,
संसारचक्रभ्रमणैकहेतुः ॥ ४॥ "देवता लोग इस जीवको सुख या दुःख नहीं देते हैं,