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अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३६९ बाहर निकला । एक शिकारका पिछा करते करते अपनी सैनासे दूर निकल गया और केवल अपने एक प्रधान सहित वह एक अगम्य अटवीमें जा पहुंचा। अटवीमें भटकते २ वे दोनों एक बड़े आम्रवृनके नीचे जा पहुँचे । आमको देखकर राजाको अपूर्व प्रेम उत्पन्न हुआ, और उसको खानेकी इच्छा जागृत हुई। 'विनाशकाले विपरितबुद्धिः ' वाली कहावत चरितार्थ हुई क्योंकि ऐसे समयमें बुद्धिमान पुरुष भी भान भूल जाता है। प्रधान ने बहुत समझाया किन्तु राजा ने उसकी प्रार्थना न स्वीकार की और कुछ भी ध्यान नहीं दिया। राजाने आम हाथमें लिया बनपक श्राम देखकर हर्षित हुआ, उसको तोडा, चूसा और तत्काल ही विशूचिका होनेसे राजा उसी स्थानपर मृत्युका शिकार हुआ।
उपनयः-राजा जिह्वाइन्द्रियपरवश होकर भामके स्वादसे आकर्षित हुमा और जीवितव्यसे भ्रष्ट हुआ, इसीप्रकार यह जीव इन्द्रियोंके वशीभूत होकर प्रमादसे कामभोगके सुखों में प्रवृत होता है । इन्द्रियोंके वशीभूत जीवको कार्याकार्यका भान नहीं होता है । लोकोक्ति भी है कि " जिसकी डाढ़ ललची उसका प्रभू रूठा" अर्थात् जो रसज्ञाके वशीभूत हुआ उसका दुनियादारीमें उच्चे बढ़नेका अधिकार नष्ट हुआ । राजाको तो थोड़े समय तक जीभपर अधिकार रहा इतना भी अनेकों वक्त तो इस जीवको नहीं रहता है और खानेकी बाबतमें तो यह इतना उँचा-नीचा हुओं करता है कि जब डाक्टर लंघन करनेको सलाह देते हैं तब जान पड़ता है । खानेके लोभसे अपने शरीरके लाभोंको भी खतरेमें डालनेसे यह जीव आनाकानी नहीं करता है। इस दृष्टान्त से दूसरा सार यह ग्रहण करनेका है कि इस जीवको संसारसुखके उपभोगसे असाध्य व्याधिसे पीड़ित होनेपर गुरु