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अधिकार ]
वैराम्योपदेशाधिकारः
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अपनी स्थिति से बाहर एकदम बड़े हो जानेकी अभिलाषा न रखनी चाहिये | छोटे बचेको तो जो पचने काबिल होता है वह ही पचता है, अधिक भारी खुराक खिलादी जावे तो उसकी ज्वरादिसे मृत्यु हो जाती है ।
८-दरिद्र कुटुम्बका दृष्टान्त
किसी ग्राम में एक दरिद्र कुटुम्ब रहता था | एक त्यौहार के दिन वे किसी गृहस्थ के गृह पर गये । वहाँ उन्हों ने जब दूधपाक बनते तथा खाते हुए देखा तो उनकी भी उसे खानेकी अभिलाषा हुई । सब ने एक साथ निर्णय किया कि आज भीख मांग कर - भी दूधपाक खाना चाहिये । एक आदमी किसी स्थानसे जैसे तैसे दूध ले आया । दूसरा फिर किसी स्थानसे चांवल ले आया । पूरी बनानेके लिये एक आदमी घृत ले आये । एक आटा ले आया । इसप्रकार अलग अलग वस्तुओंको लाकर उन्होंने दूधपाक - पूरी बनाई । जिस जिस ने जो जो वस्तु लाई थी उसी प्रमाणसे प्रत्येक ने अपना अपना हिस्सा करना आरम्भ किया; परन्तु वे सब मूर्ख थे इस लिये आपस में झघड़ा हुआ और जब प्रकार वे अपने आप न समझ सके तो वे दरबार में फरियाद करने गये । कितने ही समय पश्चात् वापिस लौटे और आकर देखा तो देखते हैं कि कुतोंने दूधपाक और पूरी सबको खालिया है । अनेकों दिनों पश्चात् प्राप्त हुई हुई वस्तुका इस प्रकार एकदम चला जाना देख कर उन सबको अत्यन्त दुःख हुआ और उनका हार्टफेल हो जानेसे वे सब मृत्युको प्राप्त हुए ।
किसी
उपनयः——महाप्रयास से माप्त
किये हुए दूधपाक पूरीका फल जिसप्रकार सर्व कुटुम्बी न पासके और इसके अतिरिक्त उसीके कारण मृत्युको प्राप्त हुए, इसी प्रकार