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३७२] अध्यात्मकल्पत्रुम
[ दशवर्षा यह मनुष्यभव बारबार नहीं मिल सकता है । अतएव यह विशेष ध्यानमें रखे कि तीसरे भाईके जैसी हमारी स्थिति न होने पावे और प्रथम भाईके समान व्यवहार रक्खें । इस मनुष्यभव में भी यदि कर्ज बढ़ता ही रहें तो निकृष्ट है ।
६-गाड़ीवान का दृष्टान्त __एक गाड़ीवानको एक ग्रामसे दूसरे प्रामको जाना था। वह उस प्रामके अच्छे तथा बुरे दोनो प्रकारके मागोंको स्वयं जानता था, फिर भी उसने ग्राम जाते हुए खड्डो तथा पहाडियों
और टेकरियोंसे पाच्छादित मार्गका अवलम्बन किया । जिसका परिणाम यह हुआ कि मार्गमें जब उसकी गाड़ी के पहिये ने जवाब दे दिया तो वह अपनी मूर्खता पर पश्चात्ताप करने लगा।
उपनया-यह लघु दृष्टान्त अत्यन्त उपयोगी है । यह उपदेश विद्वान् श्रोताओं तथा पढ़े लिखे पाठकों प्रति किया गया है । हे विद्वानों ! तुम जानते हो कि मोहसे तथा प्रमादसे संसारकी वृद्धि होती है, तुमने संसारकी अस्थिरताके विषयमें पढ़ा है, जाना है, माना है और शम, दम, दया, दान, धृति आदिसे पुण्यबंध तथा कर्मनिर्जरा होती है यह भी तुमसे छिपा हुआ नहीं है; फिर भी जो तुम्हारा व्यवहार पापमार्गकी ओर होता है यह बहुत बुरा है । अजानते भूल कर देना तो कुछ अंशोंमें सम्भव भी है परन्तु जानने पर भी अपनी गाड़ी खराब मार्गमें दोड़ाना और फिर टूट जाने पर उसके लिये पश्चात्ताप करना तद्दन निकम्मा है । तुम स्वयं समझदार हो इससे और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु यह अवश्य ध्यानमें रक्खें कि कितने ही पुरुष तुम्हारे व्यवहारका अनुकरण करते हैं।
७-भिक्षुकका दृष्टान्त एक दरिद्र ग्रामीण अपने ग्राममें कुछ उपार्जन न कर