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अधिकार] वेराग्योपदेशाधिकारः
[३६७ प्रकारसे यह दृष्टान्त मनुष्यजन्म पर ठीक प्रकार घटीत हो सकता है । विषय काकिणी समान समझना और सहस्र मुद्रा मनुष्यभव समान समझना चाहिये । किश्चित्मात्र विचार करनेसे काकिणी निमित्त सम्पूर्ण मनुष्यजन्म हारनेवालेकी मूर्खता समझमें आ सकती है।
३ जलविन्दुका दृष्टान्त. एक समय एक पुरुष तृषासें अत्यन्त दुःखी होकर अपने इष्टदेवकी स्तुति करने लगा, इससे वह देवता प्रसन्न होकर उससे संतुष्ट हुआ और उसको उठाकर क्षीरसमुद्रके समीप जा खड़ा किया । वह पुरुष मूर्ख था, उसने तो वहां भी पानी नहीं पिया
और अपनेको सठाकर लानेवाले देवको कहा कि " हे देव ! मेरे ग्रामकी सीममें एक कुआ है उसके सिरेपर दर्भ ऊगा है और उस दर्भके सिरेपर पानीका बिन्दु पड़ा है, मेरी अभिलाषा उस बिन्दुको पीनेकी है। इसलिए यदि तूं मुझसे संतुष्ट हुआ है तो मुझे वहाँ ले चल।" देवता ने जाना कि यह एक भाग्यहीन मूर्ख प्राणी है इसलिये उसको उठाकर उस स्थानपर ले गया । कुए पर जाकर देखता है तो मालूम होता है कि पानीका विन्दु तो हवासे पड़ गया है। उस समय उसको अत्यन्त दुःख हुआ कि मैं तो दोनोंसे भ्रष्ट हो गया। मैने जलबिन्दु भी खोया और क्षीरसमुद्र भी खोया; व्यर्थ ही प्यासा रहा।
उपनयः-किसी देवकी सहायतासे जिसप्रकार वह प्राणी क्षीरसमुद्र पहुंचा था और अपनी लालसाके वशीभूत होनेसे प्यासा ही वापस लौटा और दोनोंसे भ्रष्ट हुआ, इसीप्रकार तुझे भी दैवयोगसे तप संयमरूप क्षीरसमुद्र प्राप्त होनेपर यदि तूं उसका आराधन किये बिना ही ऑसबिन्दु तुल्य सांसारिक सुखकी लालसासे पीछा संसारी होनेकी अभिलाषा करेगा तो परिणामस्वरूप तुझे इस भवमें